भारतेन्दु मिश्र
भारतेंदु मिश्र अवधी कै, यहि दौर कै, अहम गद्य लेखक अहेन। इनकै दुइ उपन्यास, ‘नई रोसनी’ औ ‘चंदावती’, आय चुका हैं। एन दिल्ली में रहथेन।
चंदावती - अवधी उपन्यास
पहली किस्त: दादा केरि तेरही--
तेरह बाँभन आय गे रहै। उनका अलग चउका लगावा गा रहै, नई तेरह धोती-अँगउछा-जनेऊ-थरिया-लोटिया-नए पाटा,तेरह तुलसी बाबा वाली रामायन के गुटका अउरु तेरह संख बजार ते मँगवाये गे रहै। आस पास कि जवार ते चुने भये तेरह बाँभन नेउते गे रहै। उनकी सकल देखतै बनि परति रहै-ग्वार सुन्दर चोटइयाधारी पंडित -चन्दन टीका लगाये,ई बिधि सजे रहै कि मानौ सीध-म-सीध सरगै ते उतरि के आए होंय । गाँव के भकुआ उनका आँखी फारि फारि द्याखै लाग।छोटकउनू महराज पीतर के थारा मा सबके पाँय धोयेनि,सिवपरसाद अउरु चन्दावती दायी नये अँगउछा ते सबके पाँय पोछेनि। मोलहे उनका देखि कै सकटू ते कहेनि-‘ भाई,द्याखौ ई कतने सुघर पंडित आये है।आँखी जुडाय गयी,‘हाँ मोलहे भाई,किसमत अच्छी रहै हनुमान दादा केरि ई सब पंडित उनकी खातिर सरग केरि सीढी बनइहै।’
‘ठीक कहति हौ भइया,उनका सरग जरूर मिली।देउता रहै हनुमान दादा,सब उनकी करनी का परताप है-बहुत बडे मनई रहै वइ।’ ‘ अब बँभनन ट्वाला मा कउनौ वइस नामी मनई नही बचा है।’ ‘हमतौ कहिति है दुइ -चारि- दस गाँवन मा वइस मनई ढूँडे न मिली।’
हवन क्यार धुआँ सब तन फैलि गवा रहै। अगियारि होयेके बादि संखु-घंटा बाजै लाग। लीपे- पोते आँगन मा तेरहौ बँभनन केरी चउकी सजाय दीन्ही गयी रहै। सब देउता,नौगिरह, गइया-कउआ-कूकुर -चीटी अउरु पंचतत्वन खातिर भोग लगाय दीन गा रहै । अब तेरहौ बाँभन जीमै लाग रहैं।‘वाह चन्दावती दायी,अतना बढिया इंतिजाम,अतना सुन्दर भोजन बरसन बादि मिला है।..हनुमान दादा केरि आत्मा सरग ते देखि रही है तुमका,--बहुत असीस दै रही होई ।’ तेरही वाले बँभनन क्यार मुखिया कहेसि। चन्दावती केरी आँखी भरि आयीं।अपने अँचरे मा अपन मुँहु लुकाय लीन्हेनि।सब मौजूद मनई-मेहेरुआ तरह-तरह की बातै बनावै लाग रहैं। रामफल दादा दूरि बरोठे म बइठ रहैं। वइ सुरू हुइगे,भकुआ मुँहु फैलाय के सुनै लाग-‘प.रामदीन सुकुल उर्फ हनुमान दादा दौलतिपुर केरि नाक रहैं।उनका बडा पौरुखु रहै। दस-पाँच क्वास तके गाँव जवारि मा हनुमान दादा क्यार रुतबा रहै। दौलति पुर क्यार ई सबते बडे किसान रहैं। बसि इनहेन के दुआरे टक्टर ठाढ है।’
दौलतिपुर मा कोई पचास घर हुइहै। तेली,तम्बोली,नाऊ,कहार,धोबी,पासी,चमार,मुरऊ,ठाकुर जैसी सब जातिन क्यार घर दौलतिपुर मा है।गाँव मा बँभनन के कुल जमा तीनि घर रहैं। कउनौ पूँछेसि-‘केत्ती उमिरि रहै हनुमान दादा केरि?’ रामफल फिरि सुरू हुइगे-‘अबही मुसकिल ते पैसठ केरि उमिरि भइ होई हमते पाँच साल छोट रहैं बखत आय गवा सरग सिधार गे। नामी पहेलवान रहैं-तोहार हनुमान दादा। अपनी जवानी मा कुस्ती लडै जाति रहैं तौ सदा जीति कै आवति रहैं। दौलतिपुर केरि असल दौलति तौ हनुमान भइयै रहैं। जस-जस उनका पौरुखु घटा तस-तस गठिया उनका तंग करै लागि रहैं। बिचरऊ जवानी मा बिधुर हुइगे रहैं। तब चन्दावती ते उनका परेम हुइगा,वइ चन्दावती ते बिहाव कीन्हेनि औ वहिका मेहेरुआ केरि जगह दीन्हेनि , फिरि चन्दावती सब तना उनके साथै तीस साल रहीं। चन्दावती उनकी बिरादरी कि न रहैं। तीस साल पहिले उनका परेम हुइगा रहै। हनुमान दादा बीस बिसुआ के कनवजिया औ चन्दावती गाँव कि तेलिनि। तबै चन्दावती क्यार गउना न भवा रहै। गाँव-म उनके मंसवा के मरै केरि खबर आयी रहै। चन्दावती वाकई-म चन्दै रहै। जो कोऊ याक दाँय द्याखै ऊ देखतै रहि जाय,बहुतै खबसूरत रहै चन्दावती।ऊ जमाना रहै जब दबंग बाँभन ठाकुर जउनि नीची जातिन केरि सुन्दरि बिटिया बहुरिया देखि लेति रहैं तौ वहिका जब चहै तब अपनी हवस क सिकार बनाय लेति रहै। तब गरीब परजन के घर की मेहेरुवन केरि कउनौ इज्जति न रहै।कउनौ कानून न रहै इनके ऊपर।चन्दावती के घरवाले चन्दावती के परेम ते बहुतै खुस भे रहै।’.....
‘ द्याखौ दादा सौ-सौ रुपया दच्छिना दीन जाय रहा है’ -मोलहे इसारा कीन्हेनि। ‘रामफल दादा समझायेनि- तेरहीवाले बाँभन आँय,इनका दुरिही ते पैलगी कीन्हेव। इनकी नजर ते बचिकै रहैक चही।‘ ’ सकटू पूछेनि -काहे दादा? ‘
‘ तुम यार यकदमै बउखल हौ,हियाँ आये हौ तेरही खाय ,सवालन केरि झडी लगाय दीन्हेव।‘
‘ सकटू भइया तुम तमाखू बनाओ-लेव चुनौटी पकरौ।‘ ’अबही तमाखू ?अब तौ भोजन के बादि तमाखू खायेव।‘ ’तमाखू कि महिमा तुम नही जानति हौ-सुनौ- कृष्न चले बैकुंठ को राधा पकरी बाँह |हियाँ तमाखू खाय लो हुआँ तमाखू नाहि।...कुछ समझ्यो,अबै टेम है, तब तक तमाखू बनि सकति है। जबतक खानदान के मान्य न खाय ले तबतक हमार नम्बर कइसे लागी।‘ ‘ठीक कहति हौ रामफल दादा।‘ ’कहिति तो हम ठीकै है,..... सुनति तो नही हौ। बनाओ। तमाखू बनाओ।‘ ‘तेरह बाँभन दान दच्छिना लइ कै चलि दीन्हेनि रहै।‘
महाबाँभन के पाँय छुइकै चन्दावती दायी अलग ते वहिका पाँच सौ रुपया दच्छिना दीन्हेनि। वहिकी आँखी चमकि गयी।वहु अपन दुनहू हाँथ ऊपर उठाय के आसिरबाद दीन्हेसि तीके तेरहौ बाँभन अपन हाथ उठाय कै आसीस दीन्हेनि। छोटकउनू महराज चाँदी की तस्तरी-म पान तमाखू ,इलायची,लौग लइकै आगे बढिकै सबका बिदा कीन्हेनि। दुइ ताँगा उनका लइ जाय खातिर पहिलेहे तयार रहै। दुनहू ताँगावाले भोजन कइ लीन्हेनि रहै। उनका केरावा दइ दीन गा रहै, अउरु घर की खातिर परसा बाँधि दीन गा रहै। तेरहौ बाँभन जब ताँगन-म बइठि लीन्हेनि-तब महाबाँभन के इसारे ते ताँगा हाँकि दीन गे। हनुमान दादा की तेरही-म ताँगन-म जुति कै आये दुनहू घोडवनौ केरि दाना- पानी-मेवा ते खुब सेवा कीन गइ रहै,सो वहू मस्त हुइगे रहै।
धारावाहिक उपन्यास
किस्त दो :चन्दावती कि नींद
बहुत थकि गय रहै चन्दावती।खटिया पर पहुडतै खन नीद आय गय-सब पुरानी बातै सनीमा तना यादि आवै लागीं।...तीस साल पहिले ,वहि दिन चन्दावती सकपहिता खातिर बथुई आनय गय रहै। गोहूँ के ख्यातन मा ई साल न मालुम कहाँ ते बथुई फाटि परी रहै। हाल यू कि जो नीके ते निकावा न जाय तौ पूरी गेहूँ कि फसल चौपट हुइ जाय। जाडे के दिन रहैं। उर्द कि फसल बढिया भइ रहै। चन्दावती अपनि लाल चुनरिया ओढे हनुमान दादा के ख्यात मा बथुई बिनती रहैं। हनुमान दादा अपने रहट पर कटहर के बिरवा के तरे हउदिया तीर बइठ रहैं। न चन्दावती उनका देखिस न वइ चन्दावती का। तब चन्दावती जवान रहै—सुन्दरी तो रहबै कीन। वहि दिन चन्दावती बथुई बीनै के साथ-अपनी तरंग मा जोर –जोर ते -नदि नारे न जाओ स्याम पइयाँ परी, नदि नारे जो जायो तो जइबै कियो बीच धारै न जाओ स्याम पइयाँ परी। बीच धारै जो जायो तो जइबे कियो ,वइ पारै न जाव स्याम पइयाँ परी। वइ पारै जो जायो तो जइबे कियो /सँग सवतिया न लाओ स्याम पइयाँ परी। -- यहै गाना गउती रहैं। हनुमान दादा तब हट्टे-कट्टे पहलवान रहैं। यहि गाना मा न मालुम कउनि बात रहै कि हनुमान दादा चन्दावती ते अपन जिउ हारिगे। जान पहिचान तो पहिलेहे ते रहै। गाँवन मा सब याक दुसरे के घर परिवार का बिना बताये जानि लेति है। वैसे कैइयो लँउडे वहिके पीछे परे रहै,लेकिन आजु हनुमान दादा वहिकी तरफ बढिगे ,जैसे राजा सांतनु जइसे मतसगन्धा की खुसबू ते वाहिकी वार खिंचि गये रहैं वही तना वहि बेरिया हनुमान दादा चन्दावती की तरफ खिंचिगे। युहु गाना उनका बहुतै नीक लागति रहै,जब चन्दावती गाना खतम कइ चुकी तब वहिके तीर पहुचि के पूछेनि- ‘को आय रे?’
चन्दावती सिटपिटाय गय।..फिरि सँभरि के बोली-‘पाँय लागी दादा, हम चन्दावती।’
‘हमरे ख्यात मा का कइ रही हौ?’
‘बथुई बीनिति है........’
‘बीनि.... लेव।’
‘बसि बहुति हुइगै सकपहिता भरेक...हुइगै ’
‘अरे अउरु बीनि लेव। का तुमका बथुई खातिर मना कइ रहेन है।’
‘बसि बहुति हुइगै’
‘तुम्हारि गउनई बहुतै नीकि है,तुम्हार गाना सुनिकै तो हमार जिउ जुडाय गवा।'
चन्दावती सरमाय गयीं,तिनुक नयन चमकाय के कहेनि-
‘कोऊ ते कहेव ना दादा!’
‘काहे?’
‘तुम तौ सबु जानति हौ,बेवा मेहेरुआ कहूँ गाना गाय सकती हैं।..हम तौ बाल-बिधवा हन। ...का करी भउजी जउनु बतायेनि वहै करिति है।’
‘अउरु का बतायेनि रहै भउजी?’
‘ सुर्ज बूडै वाले हैं।..अबही रोटी प्वावैक है। हमरे दद्दू का हमरेहे हाथे कि पनेथी नीकि लागति है।..कबहूँ फुरसत म बतइबे....,अच्छा पाँय लागी।’
चन्दावती चली गय ,लेकिन राम जानै का भवा वहिका गाना- नदि नारे न जाओ...हनुमान दादा के करेजे मा कहूँ भीतर तके समाय गवा रहै। बडी देर तके वइ वहै गाना मनहेम बार बार दोहरावति रहे। रेडियो के बडे सौखीन रहै। चहै ख्यात मा जाँय, चहै बाग मा ट्रांजिस्टर अक्सर अपने साथै लइ कै चलैं। आजु चन्दावती क्यार गाना उनका बेसुध कइगा ,रेडियो पर वइ यहै गाना सैकरन दफा सुनि चुके रहैं तेहूँ चन्दावती के गावै के तरीके मा कुछु अलगै नसा रहै जो जादू करति चला गवा। सोने जस वहिका रंगु ती पर लाल चुनरी ओढिके वा हरे भरे गोंहू के ख्यात मा बइठि बथुई बीनति रहै, मालुम होति रहै मानौ कउनिव सरग कि अपसरा उनके ख्यात मा उतरि आयी है।
खुबसूरत तो चन्दावती रहबै कीन रंगु रूपु अइस कि बँभनन ठकुरन के घर की सबै बिटिया मेहेरुआ वहिके आगे नौकरानी लागैं,बसि यू समझि लेव कि पूरे दौलतिपुर मा वसि सुन्दरी बिटेवा न रहै तब। अब वहिके घरमा तेलु प्यारै क्यार खानदानी काम सबु खतम हुइगा रहै बिजुली वाला कोल्हू बगल के गाँव सुमेरपुर मा लागि गवा रहै। अब चन्दावती के दद्दू मँजूरी करै लाग रहैं।दुइ बिगहा खेती मा गुजारा मुस्किल हुइगा रहै। तेहू भइसिया के दूध ते चन्दावती के घरमा खाय पियै की बहुत मुस्किल न रहै। सुमेरपुर मा चन्दावती बेही गयी रहैं मुला किस्मति क्यार खेलु द्याखौ अबही गउनव न भा रहै कि चन्दावती क्यार मंसवा हैजा-म खतम हुइगा। बडी दौड-भाग कीन्हेनि लखनऊ के मेडिकल कालिज तके लइगे लेकिन वहु बचि न पावा। फिरि ससुरारि वाले कबहूँ चन्दावती क्यार गउना न करायेनि याक दाँय चन्दावती के दद्दू सुमेरपुर जायके बिनती कीन्हेनि तेहूँ कुछु बात न बनी।चन्दावती के ससुर साफ-साफ कहेनि –‘संकर भइया, तुम्हार बहिनिया मनहूस है..बिहाव होतै अपने मंसवा का खायगै,..वहिते अब हमार कउनौ सरबन्ध नही है। हमरे लेखे हमरे लरिकवा के साथ यहौ रिस्ता मरिगवा। ’
चन्दावती के दद्दू बुढवा के बहुत हाथ पाँय जोरेनि लेकिन वहु टस ते मस न भवा। आखिरकार चन्दावती अपने मइकेहेम रहि गयीं,बाल बिधवा के खातिर अउरु कउनौ सहारा न रहै। गाँव कि बडी बूढी चन्दावती –क मनहूस कहै लागी रहैं, लेकिन खुसमिजाज रहै चन्दा। बिधवा जीवन के दुख ते यकदम अंजान ,अबही वहिकी लरिकई वाले सिकडी-गोट्टा-छुपी-छुपउव्वल ख्यालै वाले दिन रहै। अबही जवानी चढि रही रहै । बिहाव तो हुइगा रहै-मुला पति परमेसुर ते संपर्क न हुइ पावा रहै। हियाँ गाँव कि गुँइयन के साथ चन्दा मगन रहै। हुइ सकति है अकेलेम बइठिके रोवति होय,लेकिन गाँवमा कोऊ वहिका रोवति नही देखिसि। संकर अपनी बहिनी का बडे दुलार ते राखति रहैं। संकर कि दुलहिनि चन्दा ते घर के कामकाज करावै लागि रहै। चन्दा दौरि-दौरि सब काम करै लागि रहै। समझदार तौ वा रहबै कीन।
जउनी मेहेरुआ वहिते चिढती रहैं वइ चन्दा क्यार नाव बिगारि दीन्हेनि रहै। कउनौ चंडो कहै,कउनौ रंडो कहै तो कउनिव बुढिया रंडो चंडो नाव धरि दीन्हेसि रहै। दौलतिपुर मा नाव धरै केरि यह पुरानि परंपरा आय। बहरहाल चन्दावती कहै सुनै कि फिकिर न करति रहै, वा खुस रहै। दुसरे दिन हनुमान दादा संकर का बोलवायेनि। संकर घबराय गे ,काहेते वहु दादा ते एक हजार रुपया कर्जु लीन्हेसि रहै। संकर सकुचाति भये हनुमान दादा तीर पहुँचे।हनुमान दादा अपने चौतरा पर बइठ रहैं।
‘ दादा पाँय लागी।’
‘खुस रहौ।आओ,संकर! आओ।...कहौ का हाल चाल ?’
‘तुमरी किरपा ते सबु ठीक चलि रहा है।’
‘चन्दा के ससुरारि वाले का कहेनि?’
‘बुढवा कहेसि हमरे लरिका के साथै यह रिस्तेदारी खतम हुइगै।’
‘हाँ वहौ ठीक कहति है-जब जवान लरिका मरि गवा तो फिरि बहुरिया का घर मा कइसे राखै, चन्दा क्यार गउना?’
गउना कहाँ हुइ पावा रहै दादा।...गउने केरि सब तयारी कइ लीन रहै...कर्जौ हुइगा लेकिन चन्दा केरि किस्मति फूटि गय...का करी दादा।’
‘परेसान न हो संकर! जउनु सबु बिधाता स्वाचति है,तउनु करति है।तुलसी बाबा कहेनि है-होइहै सोइ जो राम रचि राखा.. ’
‘ठीकै कहति हौ दादा!..लेकिन अब हमरे ऊपर बहुति बडी जिम्मेदारी आय गय है।...अब तुमते का छिपायी दादा,..गाँव के कुछु सोहदे हमरी चन्दा कि ताक झाँक मा रहति हैं।..अब हम का करी,वहिका रूपुइ अइस है कि .. ’
‘यह तौ अच्छी बात है...कोई ठीक लरिका होय तौ...चन्दा क्यार दुबारा बिहाव करि देव।’
‘बिहाव करै वाला कउनौ नही है..सब मउज ले वाले है..बेवा ते बिहाव को करी?बडकऊ तेवारी क्यार कमलेस,मिसिरन क्यार बिनोद ई दुनहू चन्दावती के चक्कर मा हैं।’
‘..इनके दुनहू के तौ बिहाव हुइ चुके हैं..दुनहू लरिका मेहेरुआ वाले हैं।’
‘यहै तौ..का बताई?...कुछु समझिम नही आवति..’
हमरी मदति कि जरूरति होय तो बतायो..तुम कहौ तो तेवारी औ मिसिर ते बात करी।’
‘नाही दादा!..बात-क बतंगडु बनि जायी। चन्दा कि बदनामिव होई सेंति मेति,......कोई अउरि जतन करैक परी।’
‘या बात तो ठीक कहति हौ,संकर!..न होय तौ कहूँ अउरु दूसर बिहाव कइ देव।’
‘याक दाँय क्यार कर्जु तौ अबहीं निपटि नही पावा है।...फिरि जो हिम्मति करबौ करी तो दूसर लरिका कहाँ धरा है।’
‘कोई ताजुब नही है कि हमरी तना कउनौ बिधुर मिलि जाय।’
‘तुमरी तना कहाँ मिली..?’
‘काहे?’
‘अरे कहाँ तुम बाँभन देउता, कहाँ हम नीच जाति तेली।’
‘बात तो ठीक है लेकिन हमका कउनौ एतराज नही है।.जब हमरे घरमा वुइ बेमार रहै तब मालिस करै तुमरी दुलहिन के साथ चन्दा आवति रहै। हमका वा तबहे ते बडी नीकि लागति है,कबहूँ कोऊ ते कहा नही हम आजु तुमते बताइति है।...द्याखौ परेसानी तो हमहुक बहुति होई।.....लेकिन जउनु होई तउनु निपटा जायी।....पहिले तुम चन्दावती क्यार मनु लइ लेव,अपने घर मा राय मिलाय लेव। फिरि दुइ-तीन दिन मा जइस होय हमका चुप्पे बतायो।’
‘तुम्हार जस नीक मनई-बाँभन, हमका दिया लइकै ढूढे न मिली,यू तौ हम गरीब परजा पर बहुत उपकार होई।’
‘साफ बात या है कि तुमरी चन्दावती हमहुक बहुत नीकी लगती हैं...लेकिन अबहीं कोऊ गैर ते यह बात न कीन्हेव।’
‘ठीक है दादा।..पाँय लागी..’
‘खुस रहौ।..चन्दावती कि राय जरूर लइ लीन्हेव।’
‘ठीक है..’संकर मनहिम अपनि खुसी दबाये अपने घर की राह लीन्हेनि। संकर कमीज के खलीता ते बीडी निकारेनि तनिक रुकिकै बीडी सुलगायेनि औ खुसी की तरंग मा फिरि घर की तरफ चलि दीन्हेनि। आजु वहिके पाँव सीधे न परि रहे रहैं।
( भारतेंदु मिश्र द्वारा लिखी अवधी उपन्यास 'चंदावती' का अंश )
बाहर के कड़ियाँ
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]- छपरा कस उठी! Archived 2014-08-18वेबैक मशीन पर .