शंकरदेव
श्रीमंत शंकरदेव: (असमीया: শ্ৰীমন্ত শংকৰদেৱ) एक बहुत प्रसिद्ध कवि, नाटककार, गायक, नर्तक, सामाजिक संगठक अऊर असमीया भाषा के हिन्दू सामाजिक सुधारक रहें। उ नववैष्णव या एकशरण धर्म का प्रचार कइके असमिया जीवन का संग्रहित अऊर समेकित किहिन।

जीवनी
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]श्रीमंत शंकरदेव का जन्म असम के नौगांव जिला के बरदौवा के पास अलीपुखुरी में हुआ था। उनकर जनम तिथि अबहियों विवादास्पद अहै, हालांकि ई आम तौर पर 1371 शाक माना जात है। उनके जनम के कुछ दिन बाद ही उनकी माता सत्यसंध्या का देहांत हो गया। उनकर शादी इक्कीस साल के उमर मा सूर्यवती से भै। मनु कन्या के जन्म के बाद परलोक नारी बनी सूर्यवती।
32 साल के उमर मा शंकरदेव का मोहभंग होइगा अऊर आपन पहिला तीर्थयात्रा शुरू किहिन अऊर उत्तर भारत के सब तीर्थस्थलन का देखिन। शंकर जी ने रूपा गोस्वामी अऊर सनातन गोस्वामी से भी साक्षात्कार लिहिन। तीर्थयात्रा से लउटे के बाद शंकरदेव कै शादी 54 साल कै उमर मा कालिंदी से भै। तिरहुटिया ब्राह्मण जगदीश मिश्रा बरदौवा गये अऊर शंकरदेव से भागवत सुनाइन अऊर ई किताब ओनका भेंट किहिन। जगदीश मिश्रा के स्वागत मा शंकरदेव "महानत" कै प्रस्तुति कै आयोजन किहिन। पहिले “चिहल्यात्र” कै तारीफ कीन गै रही। शंकरदेव 1438 शका में भुइयन राज्य छोड़ के अहोम राज्य में प्रवेश किहिन। संस्कारवादी विप्र शंकरदेव के भक्ति उपदेश का पुरजोर विरोध किहिन। ब्राह्मण दिहिगिया राजा से प्रार्थना किहिन कि शंकर वैदिक विरोधी विचारन का प्रचारित करत हैं। कुछ पूछताछ के बाद राजा ओका निर्दोष घोषित किहिन। हाथीधारा प्रसंग के बाद शंकरदेव भी अहोम राज्य छोड़ दिहिन। पटवौसी मा १८ साल रहय के बाद कइयौ किताब लिखिन। 67 साल के उमर मा, उ बहुत किताब लिखिन। साल के उमर मा, उ दूसरी बार आपन तीर्थयात्रा शुरू किहिन। उन्होंने कबीर के मठ में दर्शन कर श्रद्धांजलि अर्पित की। यहि यात्रा के बाद उ बारपेटा लौटि आए। कोच राजा नारानारायण ने शंकरदेव को आमंत्रित किया। सन १४९० मा शाक कूच बिहार मा वैकुण्ठ गामी भए।
शंकरदेव के वैष्णव संप्रदाय का मान्यता शरण है। यहि धर्म मा मूर्ति पूजा कय प्रधानता नाय अहै। धार्मिक पर्व के समय मंच पर केवल एक पवित्र पुस्तक रखी जात है अऊर केवल उहै नैवेद्य अऊर भक्ति के रूप मा चढ़ावा जात है। यहि संप्रदाय मा दीक्षा के कौनो व्यवस्था नाहीं है।