शनिदेव
शनिदेव Shani Dev | |
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देवनागरी | शनिदेव |
वर्ग | नवग्रह, मध्यकालीन हिन्दू ज्योतिष |
Planet | शनि |
अस्त्र | धनुष, बाण |
Day | सनीचर |
जीवनसाथी | माण्डा/धामिनी आ नीला |
Parents | सुर्य आ छाया |
बालबच्चा | कुलिङ्गा, गुल्लिका |
वाहन | कौआ, भैंस वा गिद्ध |
शनिदेव (अंग्रेजी:Shani Dev) का सूर्यदेव का सबसे बड़ा पुत्र एवं कर्मफलदाता माना जात है। पर साथ ही पितृ शत्रु भी, शनि ग्रह के सम्बन्ध में अनेक भ्रम अउर एही से उ मारक, अशुभ अउर दुख कारक माना जात है।[१] पच्छिमी ज्योतिषी भी ओका दुःख देइवाला मानत हीं। लेकिन शनि उतना अशुभ अउर घातक नहीं है जेतना कि लोग उसे समझते हैं। एतनई नाहीं बल्कि अपने समरथ से जियादा प्रोत्साहन दइ दिहेन। मोक्ष का दे वाला एक मात्र शनि है. सत्य इ अहइ कि शनि प्रकृति का संतुलन बनावत ह, अउर हर प्राणी का उचित न्याय देत ह । जउन अनुचित विषमता अउर अप्राकृतिक बराबरी क आश्रय देत हीं, शनि तउ ओनहीं क पीड़ा देत ह । अनुराधा नक्षत्र का स्वामी शनि अहै।
मत्स्य पुराण के अनुसार शनिदेव का शरीर इंद्र की नीलमणि जइसन चमकीला बा, ऊ गिद्ध पर सवार बा, उनके हाथ में धनुष - बाण बा, अउर एक हाथ से वर मुद्रा भी अहै।
पौराणिक कथा
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]शनिदेव के उत्पत्ति के कथा के अनुसार, उ सूर्य देवता के पुत्र हउँव।[२]उनकर माता के नाम छाया ह। शनिदेव के जन्म के बाद, उनकर माता छाया के सूर्य देवता से अनबन हो गइल रहे। एह से शनिदेव के बाल्यकाल में बहुत कष्ट भोगलें।
वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:।
अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥
भावार्थ: - शनि वैदूर्य रत्न या बाणफूल या अलसी के फूल जइसन निर्मल रंग से जब प्रकासित होत है, त उ समय प्रजा खातिर शुभ फल देत है इ अन्य वर्णन का प्रकाश देत है, त उच्च वर्णन का समाप्त करत है, ऐसा ऋषि, महात्मा कहत हैं।
धर्मग्रंथ के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ, जब शनि देव छाया के गर्भ में रहे तब छाया भगवान शिव की भक्ति में इतना ध्यान मगन रही कि उ आपन खाना पीना तक सुधरा नाहीं रही जेकर प्रभाव उनके पुत्र पर पड़ा और उनका वर्ण श्याम हो गया। शनि का श्यामवर्ण देखके सूर्य आपन पत्नी छाया पर आरोप लगाइस कि शनि मोर बेटा नाही है। तब से शनि अपने पिता से दुश्मनी रखले रहे। शनि देव आपन साधना तपस्या से शिवजी के प्रसन्न कइके अपने पिता सूर्य के समान शक्ति प्राप्त कइ लिहलन अउर शिवजी शनि देव से वरदान मांगइ के कहिन, तब शनि देव प्रार्थना कइ लिहलन कि युग युग से मोर माता छाया के पराजय होत रही है, मोर पिता सूर्य द्वारा अनेक बार अपमानित करल गइल बा। एह बरे माई चाहत रही कि मोर पूत आपन बाप स मोरे अपमान क बदला लेई अउर अपने बाप स भी जियादा सक्तीसाली बनइ । तब भगवान शंकर ने वरदान देत कहा कि नवग्रहों में तोहार सबसे अच्छा स्थान होई । मनई तउ, का देवता तोहसे भी डरिहीं।
शनिदेव के प्रसिद्ध मंदिर
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]- तिरुनल्लर श्री शनेश्वर मंदिर : नौ ग्रहन के आधार के रूप मा हिंया नौ मंदिर हैं।
- देवोनार शनि मंदिर : मुंबई मा एक देवोनार शनि मंदिर है।
- शनि शिंगणापुर: यह भगवान शनि का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। ई महाराष्ट्र मा है।
सन्दर्भ
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]- ↑ "Google Books". Google. 10 September 2018. अभिगमन तिथि 6 May 2025.
- ↑ ऑनलाइन, जनसत्ता (2 June 2017). "सूर्यदेव के पुत्र हैं शनिदेव, जानिए उनके जन्म के पीछे क्या है कहानी ?". Jansatta (हिन्दी में). अभिगमन तिथि 6 May 2025.