पुराण

विकिपीडिया से

पुराण, हिंदु कय धर्मसंबंधी आख्यानग्रंथ होय जवनेमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषि, मुनि अउर राजा कय वृत्तात आदि अहैं। ई वैदिक काल कय काफ़ी बाद कय ग्रन्थ हैं, जवन स्मृति विभाग में आवत अहैं। भारतीय जीवन-धारा में जवन ग्रन्थ कय महत्वपूर्ण स्थान अहै वनमें पुराण भक्ति-ग्रंथ कय रूप में बहुत महत्वपूर्ण माना जाते अहैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवता कय केन्द्र मानकय पाप औ पुण्य, धर्म औ अधर्म, कर्म औ अकर्म कय गाथा कही गा अहैं। कुछ पुराणों में सृष्टि कय आरम्भ से अन्त तक कय विवरण किहा गा अहै। यहमा हिन्दू देवी-देवता कय अउर पौराणिक मिथक कय बहुत अच्छा वर्णन अहै।

कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) कय ओर आईकै भारतीय मानस में पुराणों कय माध्यम से भक्ति कय अविरल धारा प्रवाहित करे है। विकास कय इही प्रक्रिया में बहुदेववाद औ निर्गुण ब्रह्म कय स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति कय ओर प्रेरित भए।

पुराणों में वैदिक काल से चलत सृष्टि आदि संबंधी विचार, प्राचीन राजा अउर ऋषिय कै परंपरागत वृत्तांत तथा कहानि आदि कय संग्रह कय साथ साथ कल्पित कथा कय विचित्रता अउर रोचक वर्णन द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलत अहैं। पुराण उहै प्रकार कय प्रमाण ग्रंथ नाहीं होय जवन प्रकार श्रुति, स्मृति आदि होय।

पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य अउर भागवत में ऐतिहासिक वृत्त— राजा कय वंशावली आदि कय रूप में बहुत कुछ मिलत अहैं। ई वंशावलि यद्यपि बहुत संक्षिप्त अहैं अउर यहमा परस्पर कहु विरोध भी अहैं लेकिन् हैं बडे़ काम कय। पुराण कय ओर ऐतिहासिकविद् यहर विशेष रूप से ध्यान दिहे अहै अउर वे ई वंशावलि कय छानबीन में लाग हैं।

शाब्दिक अर्थ एवं महिमा[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

पुराण भुतकाल, वर्तमान अउर् भविष्यकाल कय देखल युग होय जवने कै बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा गा है जवनेकै धर्म में आस्था राखय वाले लोग धर्म ग्रन्थ मानत अहैं अउर जवन लोग बुध्द्धिजीवी होत अहैं वे एका विज्ञान कय रूप में देखते अहैं जवनेकय उदारहरण द्वारा आप समझा जाई सकत अहैं पुराण में 14 मन्वन्तर कय बारे में बतावा गा है साथ ही पृथ्वी कय आयु बतावा गा है, कौने युग में केतना ग्रह कय आकाश मंडल रहा उहो बताव बतावा है वह् समय कौन-२ देवता रहे उहो बतावा है, पृथ्वी कय कौन शत्रु रहे वन्का विनाश कैसे भए हिया सब बतावा है लेकिन यतने सुंन्दर ढग से लिखा गा है की सब चीज धर्म अउर पुरान कथा जैसन् लागत अहै जवनेकै आज तक नासा जइसन वैज्ञानिक सङग्ठन् तक नाहीं समझ पाए, नासा जवनेकै आधार हिन्दुत्व वेद होय जवनेपे वे आरभ से ही लागा रहे लेकिन् आज तक सही से नाहीं जान पाए की हिन्दुत्व सस्क्रिती काव् होय हिन्दू कय सब कुछ विज्ञान पे आधारित अहै इहै पुराण होय:- पुराण में बतावा है कि पृथवी ६ दाई नष्ट होई चुका है ई सातवी उतपती होय अउर आय वाला ७ युग कय व्याखा है, पुराण सब प्रमाणों कय साथ आपकय बतावत है की हम जवन भी यहमा लिखित अहन वह सब सत्य अउर प्रमाण वाला होय आप जवन इ समय पृथवी पर हव ऊ पूराण कय अनुसार वैवस्त मन्वन्तर (युग) होय,

विषयवस्तु[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

रक्तबीजासुर के साथ युद्ध के लिए तैयार दुर्गा, मार्कण्डेयपुराण

प्राचीनकाल से पुराण देवता, ऋषि, मनुष्य - सब का मार्गदर्शन करत अहैं। पुराण मनईनकय धर्म एवं नीति कय अनुसार जीवन व्यतीत करय कय शिक्षा देत अहैं। पुराण मनुष्य कय कर्म कय विश्लेषण कईकै वन्हें दुष्कर्म करय से रोकत अहैं। पुराण वस्तुतः वेद कय विस्तार होय। वेद बहुतै जटिल तथा शुष्क भाषा-शैली में लिखा गा अहैं। वेदव्यास जी पुराण कय रचना अउर पुनर्रचना कीहिन्। कहा जात अहै, ‘‘पूर्णात पुराण ’’ जवने कै अर्थ होय वेद कय पूरक , अर्थात् पुराण (जवन वेद कय टीका होय)। वेद कय जटिल भाषा में कहल बात कय पुराण में सरल भाषा में समझावा गा हैं। पुराण-साहित्य में अवतारवाद कय प्रतिष्ठित कै गा है। निर्गुण निराकार कय सत्ता कय मानिकै सगुण साकार कय उपासना करेकै ई ग्रंथ कय विषय होय। पुराण में अलग-अलग देवी-देवता कय केन्द्र में रखिकै पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म और कर्म-अकर्म कय कहानि हैं। प्रेम, भक्ति, त्याग, सेवा, सहनशीलता अईसन मानवीय गुण होय, जवनकय अभाव में उन्नत समाज कय कल्पना नाहीं कइ जा सकत अहै। पुराणों में देवी-देवताओं कय अनेक स्वरूप कय लईकै एक विस्तृत विवरण मिलत अहै। पुराण में सत्य कय प्रतिष्ठित करै में दुष्कर्म कय विस्तृत चित्रण पुराणकारलोग किहिन् अहै। पुराणकार देवता कय दुष्प्रवृत्ति कय व्यापक विवरण किहिन् अहै लेकिन मूल उद्देश्य सद्भावना कय विकास अउर सत्य कय प्रतिष्ठा होय।

अट्ठारह पुराण[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

पुराण अठारह अहैं।
​​मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् ।
​​अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ॥
म-2, भ-2, ब्र-3, व-4 ।​
अ-1,ना-1, प-1, लिं-1, ग-1, कू-1, स्क-1 ॥
विष्णु पुराण कय अनुसार वनकय नाव हैं—विष्णु, पद्य, ब्रह्म, वायु(शिव), भागवत, नारद, मार्कंडेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड अउर भविष्य।

  1. ब्रह्म पुराण
  2. पद्म पुराण
  3. विष्णु पुराण
  4. वायु पुराण -- (शिव पुराण)
  5. भागवत पुराण -- (देवीभागवत पुराण)
  6. नारद पुराण
  7. मार्कण्डेय पुराण
  8. अग्नि पुराण
  9. भविष्य पुराण
  10. ब्रह्म वैवर्त पुराण
  11. लिङ्ग पुराण
  12. वाराह पुराण
  13. स्कन्द पुराण
  14. वामन पुराण
  15. कूर्म पुराण
  16. मत्स्य पुराण
  17. गरुड़ पुराण
  18. ब्रह्माण्ड पुराण

पुराण में एक विचित्रता ई अहै कि प्रत्येक पुराण में अठारह पुराण कय नाव अउर वनकयश्लोकसंख्या अहै। नाव अउर् श्लोकसंख्या प्रायः सबकय एक्कै है, कहु कहु भेद अहै। जैसय कूर्म पुराण में अग्नि कय स्थान में वायुपुराण; मार्कंडेय पुराण में लिंगपुराण कय स्थान में नृसिंहपुराण; देवीभागवत में शिव पुराण कय स्थान में नारद पुराण अउर मत्स्य में वायुपुराण अहै। भागवत कय नाव से आजकल दुई पुराण मिलत अहैं—एक श्रीमदभागवत, दूसर देवीभागवत। कौन वास्तव में पुराण अहै यहपे झगड़ा रहा अहै। रामाश्रम स्वामी 'दुर्जनमुखचपेटिका' में सिद्ध किहिन् अहै कि श्रीमदभागवत ही पुराण होय। यह पे काशीनाथ भट्ट 'दुर्जनमुखमहाचपेटिका' तथा एक अउर पंडित 'दुर्जनमुखपद्यपादुका' देवीभागवत कय पक्ष में लिखे रहे।

उपपुराण[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

  1. गणेश पुराण
  2. श्री नरसिंह पुराण
  3. कल्कि पुराण
  4. एकाम्र पुराण
  5. कपिल पुराण
  6. दत्त पुराण
  7. श्रीविष्णुधर्मौत्तर पुराण
  8. मुद्गगल पुराण
  9. सनत्कुमार पुराण
  10. शिवधर्म पुराण
  11. आचार्य पुराण
  12. मानव पुराण
  13. उश्ना पुराण
  14. वरुण पुराण
  15. कालिका पुराण
  16. महेश्वर पुराण
  17. साम्ब पुराण
  18. सौर पुराण
  19. पराशर पुराण
  20. मरीच पुराण
  21. भार्गव पुराण

अन्यपुराण तथा ग्रन्थ[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

  1. हरिवंश पुराण
  2. सौरपुराण
  3. महाभारत
  4. श्रीरामचरितमानस
  5. रामायण
  6. श्रीमद्भगवद्गीता
  7. गर्ग संहिता
  8. योगवासिष्ठ
  9. प्रज्ञा पुराण

श्लोक संख्या[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

सुखसागर कय अनुसारः

  1. ब्रह्मपुराण में श्लोक कय संख्या १४००० अउर २४६ अद्धयाय है|
  2. पद्मपुराण में श्लोक कय संख्या ५५००० हैं।
  3. विष्णुपुराण में श्लोक कय संख्या तेइस हजार हैं।
  4. शिवपुराण में श्लोक कय संख्या चौबीस हजार हैं।
  5. श्रीमद्भावतपुराण में श्लोक कय संख्या अठारह हजार हैं।
  6. नारदपुराण में श्लोक कय संख्या पच्चीस हजार हैं।
  7. मार्कण्डेयपुराण में श्लोक कय संख्या नौ हजार हैं।
  8. अग्निपुराण में श्लोक कय संख्या पन्द्रह हजार हैं।
  9. भविष्यपुराण में श्लोक कय संख्या चौदह हजार पाँच सौ हैं।
  10. ब्रह्मवैवर्तपुराण में श्लोक कय संख्या अठारह हजार हैं।
  11. लिंगपुराण में श्लोक कय संख्या ग्यारह हजार हैं।
  12. वाराहपुराण में श्लोक कय संख्या चौबीस हजार हैं।
  13. स्कन्धपुराण में श्लोक कय संख्या इक्यासी हजार एक सौ हैं।
  14. वामनपुराण में श्लोक कय संख्या दस हजार हैं।
  15. कूर्मपुराण में श्लोक कय संख्या सत्रह हजार हैं।
  16. मत्सयपुराण में श्लोक कय संख्या चौदह हजार हैं।
  17. गरुड़पुराण में श्लोक कय संख्या उन्नीस हजार हैं।
  18. ब्रह्माण्डपुराण में श्लोक कय संख्या बारह हजार हैं।