वाराणसी

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वराणसी
काशी या बनारस
महानगर व तीर्थस्थल
बायें से दक्षिणावर्त: अहिल्या घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर, नया काशी विश्वनाथ मंदिर, गंगा नदी, वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का प्रवेशद्वार, बीच में बनारसी साड़ी (ऊपर), काशी करवट-सिंधिया घाट, (नीचे)
वाराणसी की उत्तर प्रदेश के मानचित्र पर अवस्थिति
वाराणसी
वाराणसी
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देसांक: 25°19′08″N 83°00′43″E / 25.319°N 83.012°E / 25.319; 83.012निर्देशांक: 25°19′08″N 83°00′43″E / 25.319°N 83.012°E / 25.319; 83.012
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलावाराणसी ज़िला
शासन
 • प्रणालीनगर निगम
 • सभावाराणसी नगर निगम
क्षेत्रफल
 • महानगर व तीर्थस्थल82 किमी2 (३२ वर्गमील)
 • महानगर163.8 किमी2 (६३.२ वर्गमील)
ऊँचाई80.71 मी (२६४.८0 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • महानगर व तीर्थस्थल१२,१२,६१०
 • महानगर१४,३२,२८०
वासीनामबनारसी
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी, भोजपुरी
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड221 001 से 221 0xx
दूरभाष कोड0542
वाहन पंजीकरणUP-65
लिंगानुपात0.926 /
साक्षरता दर80.31%
एच डी आई0.645
वेबसाइटvaranasi.nic.in

वाराणसी, जेका काशी अउर बनारस भी कहा जात ह, भारत कय उत्तर प्रदेश राज्य मा गंगा नदी कय तट पे स्थित एक प्राचीन नगर अहै। हिन्दू धरम मा इ एक अति महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, अउर बौद्ध अउर जैन धरम का भी एक तीर्थ स्थल है। हिन्दू मान्यता मा इ "अविमुक्त क्षेत्र" कहा जात है।

वाराणसी विश्व कय सबसे पुरान शहरन् में से एक होय । काशी नरेश (काशी का महाराजा) वाराणसी शहर कय मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक अउर सब धार्मिक क्रियाकलाप कय अभिन्न अंग अहै। वाराणसी क संस्कृति का गंगा नदी अउर एकर धार्मिक महत्व से अटूट सम्बन्ध बा। ई शहर हजारन साल से भारत कय, विसेस रूप से उत्तर भारत कय, सांस्कृतिक अउर धार्मिक केंद्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही पैदा अउर विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जेमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानंद गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया अउर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास हिन्दू धर्म का परम - पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखले रहे अउर गौतम बुद्ध आपन पहिला प्रवचन यहीं पास ही सारनाथ में दिहले रहे. वाराणसी मा चार बडे विश्वविद्यालय स्थित है: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हायर तिब्बती स्टडीज अउर संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। इहां के निवासी मुख्य रूप से काशिका भोजपुरी बोलत हैं, जवन हिन्दी कय ही एक बोली अहै। वाराणसी कय अक्सर 'मंदिरन कय सहर', 'भारत कय धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव कय नगरी', 'दीपन् कय सहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणन से सम्बोधित करल जात है। मशहूर अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन लिखले बाड़े: "बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपरा से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी पुराना है, और जब इन सबको मिला कर रखो, तो उस संग्रह से भी दोगुना पुराना है।

नाम का अर्थ[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

वाराणसी नाम कय उत्पत्ति संभवतः इहँय कय दुइ स्थानीय नदियन वरुणा नदी औ अस्सी नदी कय नाम से भवा अहै। इ सबइ नदियन उत्तर स आवत हीं अउर दक्खिन स आवत हीं अउर इ सबइ गंगा मँ मिल जात हीं। नाम का एक और विचार वरुणा नदी के नाम से आवेला, जेके संभवतः प्राचीन काल में वाराणसी ही कहा जायला अउर एहीसे शहर का नाम मिला। एकर समर्थन मँ कछू प्रारंभिक ग्रंथ मिल सकत हीं, परन्तु इतिहासकारन द्वारा इ दूसर विचार सही नाहीं ठहरावा गवा बा । लम्बे काल से वाराणसी का अविमुक्त क्षेत्र, आनंद - कन्नन, महाश्मशान, सुरंधन, ब्रह्मावर्त, सुदर्शन, रम्य, अउर काशी नाम से भी सम्बोधित करल जात रहा है। ऋग्वेद मा शहर काशी या कासी नाम से बोला गवा है। इ प्रकासित शब्द से लिया गवा है जेकर अरथ शहर कय ऐतिहासिक स्तर से अहै, काहे से ई शहर हमेशा से ज्ञान, शिक्षा औ संस्कृति कय केन्द्र रहा है। काशी सब्द सबसे पहिले अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से आया है अउर एकर बाद शतपथ में भी उल्लेख बा । लेकिन इ मुमकिन बा कि नगर का नाम जनपद में पुरान हो। स्कंद पुराण का काशी खंड में नगर की महिमा १५,००० श्लोक मा बताई गई है। एक श्लोक में भगवान शिव कहते हैं:

तीनों लोकों से समाहित एक शहर है, जिसमें स्थित मेरा निवास प्रासाद है काशी

अथर्ववेद मा वरुणावती नदी का नाम आइल बा, जवन कि आधुनिक वरुणा नदी खातिर ही प्रयोग भईल होई । अस्सी नदी क पुराणन मा असिसंभेद तीर्थ कहा गवा बा । स्कंद पुराण के काशी खंड मा कहल गयल ह कि संसार के सब तीर्थ मिलके असिसंभेद के सोलहवां भाग के बराबर भी नाहीं होत हयन. अग्नी पुराण मा असि नदी का व्युत्पन्न कइके नासी भी कहा गवा है। अगर वाराणसी का खंडन करी त नासी नाम की नदी निकरी है, जवन समय के साथ असी नाम मा बदल गई। महाभारत मा वरुणा या आधुनिक बरना नदी का प्राचीन नाम वाराणसी होय के पुष्टि होत है। एह बरे वाराणसी सब्द क दुइ नदियन क नाउँ पइ बनइ क चर्चा बाद मँ कीन गवा अहइ।

वाराणसी क एक अउर संदर्भ ऋषि वेद व्यास एक अउर गद्य मा दिहे ह:

गंगा तरंग रमणीय जातकलापनाम, गौरी निरन्तर विभूषित वामभागम.
नारायणप्रियम अनंग मदापहारम, वाराणसीपुर पतिम भज विश्वनाथम

इतिहास[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर क स्थापना हिन्दू भगवान शिव कय लगभग ५००० वर्ष पहिले कीन गवा रहा, जेकरे कारण ई आज एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल अहै। इ हिंदुअन कय पवित्र सप्तपुरी में से एक अहै। स्कन्द पुराण, रामायण, महाभारत अउर प्राचीनतम वेद ऋग्वेद सहित कई हिन्दू ग्रन्थ में इ नगर का उल्लेख आवेला। आम तौर पर वाराणसी शहर लगभग ३००० वर्ष पुरान मानल जात बा, लेकिन हिन्दू परम्परा के अनुसार काशी एकरा से भी बहुत पुरान मानल जात बा. नगर मलमल अउर रेशमी कपड़ा, इत्र, हाथी दाँत अउर शिल्प कला खातिर व्यापारिक अउर औद्योगिक केन्द्र रहा ह । गौतम बुद्ध (जन्म ५६७ ई॰) (अवधीः "हमरे जे होइ उहै रहै चाहित हन") काशी राज्य कय राजधानी वाराणसी कय समय रहा। बनारस के दशाश्वमेध घाट के समीप बने शीतला माता मंदिर का निर्माण अर्कवंशी क्षत्रिय लोगन कराए रहेन। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग नगर क धार्मिक, शैक्षणिक अउर कलात्मक गतिविधि क केन्द्र बताइस ह अउर एकर विस्तार गंगा नदी क किनारे ५ किमी तक लिखा ह । आधुनिक काशी राज्य क स्थापना काशी नरेश मनसाराम सिंह ने सन् १७२५ ईस्वी मा की थी। उनकर बेटा राजा बलवंत सिंह रहलन जे १७७० ईसवी तक बनारस (काशी) राज्य पर राज करत रहलन।

बनारस का रामनगर किला का निर्माण राजा बलवंत सिंह कराये रहे. राजा बलवंत सिंह कय पूत राजा चेत सिंह भवा जे १७७० ईस्वी से लेके १७८१ ईस्वी तक शासन कईलन। वारेन हेस्टिंग्स द्वारा १४ अगस्त १७८१ ई. में बनारस पर आक्रमण के दौरान राजा चेत सिंह अंग्रेज सेना के साथ लड़ाई लड़के ओकरा के पराजित कर दिहलन, वारेन हेस्टिंग्स के आपन जान बचावे खातिर स्त्री भेष धारण कइके रात के अंधेरे में बनारस से भाग जाय के पड़ल. वारेन हेस्टिंग्स अतिरिक्त सैनिक मंगवाके काशी पर दोबारा हमला कईले जवने में राजा चेत सिंह पराजित हो गई अउर उनका बनारस से निर्वासित होके ग्वालियर जाये के पड़ल । राजा चेत सिंह आजीवन कभी बनारस नाहीं लौट सका। निर्वासित जीवन में हुए २९ मार्च सन् १८१० ईवी मा काशी नरेश राजा चेत सिंह का ग्वालियर में स्वर्गवास हो गइल।

विभूतियाँ[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

काशी में प्राचीन काल से समय समय पर अनेक महान विभूतियन का प्रदुर्भाव या वास रहा है। होई जिसादे कुछ हिस्से एह हैन:

मौसम[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

वाराणसी मा आर्द्र अर्ध-उष्णकटिबंधीय जलवायु (कोप्पन जलवायु वर्गीकरण Cwa के अनुसार) है जेकर साथ यहाँ ग्रीष्म ऋतु औ शीत ऋतुओं के तापमान मा बड़ा अंतर है। ग्रीष्म ऋतु अप्रैल कय सुरुआत से अक्टूबर तक लम्बा होत है, जवने कय बीच वर्षा ऋतु में मानसून कय बरखा भी होत है। हिमालय क्षेत्र से आवै वाले शीत लहर से इहाँ का तापमान दिसम्बर से फरवरी के बीच जाड़ा के मौसम में गिर जात है। यहाँ का तापमान 32° से.- 46°C (90° फ. - 115° फ.) ग्रीष्म काल मा, औ ५°से. - १५°से. (४१°फै. - ५९°फै.) जाड़ा का समय रहता है। औसत वार्षिक वर्षा १११० मिमी से कम मा होई । मी. मा (४४ इंच) तक का होत है। ठण्डा मौसम मा कुहरा सामान्य ह्वाई गर्मी मौसम मा लू चलना सामान्य ह्वाई।