कजरी

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कजरी (कजली) यहि शब्द कै व्युत्पत्ति सावन महीना में आकाश में आच्छादित बादर कै करियापन से लिहा गा है । जवन कि गाजर के जइसै होत है । यही गाजर का अवधी में काजर कहा जात है, यही से कजरी बना है । अवधी लोक समाज में कजरी गीत सावन औ भदौ महीना में गावा जात है । वर्षा के समय आसमान में करिया बादर कै बर्चस्व, धरती में धानी चुनरी ओढे मेहरारु, वगिया मा झलुवा झूलत कजरी गीत गावत हैं । यहि गीत कै विषयवस्तु मुख्यतः प्रेम प्रधान होत हैं । यहमा विप्रलंभ औ संभोग दूनौ किसिम के श्रृङ्गार रस कै भाव होत हैं । यहमा पति पत्नी का छोडि कै ढेर दिन से विदेश जाय के नाते विरह, पतिव्रता कै प्रेम औ नन्द भउजी कै हास परिहास आदि मिलत हैं ।

ठाड कुवां पर भीजै गोरिया सिरपर धरे गगरिया नाय । टेक ससुरु बडा कडा जल बरसय कइसै जाबौ नोकरिया नाय पा“व पनहिया हाथे छतरिया सिरपर धरे रुमलिया नाय दुलहिन मजे मजे चला जाबै जालिम कठिन नोकरिया नाय, ठाड कुवा पे भीजै ...... । देवरा बडा कडा जल बरसै कइसै जाबौ नोकरिया नाय पा“व पनहिया हाथे छतुरिया सिरपर धरे रुमलिया नाय भयहू मजे मजे चला जाबै जालिम कठिन नोकरिया नाय, ठाड कुवा पे भीजै ..... । देवरा बडा कडा जल बरसै कइसै जाबौ नोकरिया नाय पा“व पनहिया हाथे छतुरिया सिरपर धरे रुमलिया नाय भउजी माजे मजे चला जाबै जालिम कठिन नोकरिया नाय । ठाड कुवा पे भीजै ........ । सइयां बडा कडा जल बरसै कइसै जाबौ नोकरिया नाय पा“व पनहिया हाथे छतुरिया मन मा तोरि सुरतिया नाय धनिया मजे मजे चला जाबै जालिम कठिन नोकरिया नाय, ठाड कुवा पे भीजै ।

ज्यौना न जेवैं चरावैं लाली गइया हो । खेलन ............ । झाझर गेडुवा गंगाजल पानी, गेडुवा न घूटैं चरावैं लाली गइया हो । खेलन ............. । लवङ इलाइची कै बीरा जोरायौं, बिरवा न कूचैं चरावैं लाली गइया हो । खेलन .............. । पूmला हजारी कै सेजिया बिछायौं, सेजिया न सूतैं चरावैं लाली गइया हो । खेलन ............