चाणक्य

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चाणक्य


चाणक्य

जनम अनुमानतः ईसापूर्व ३७५,पंजाब
मौत अनुमानतः ईसापूर्व २२५,पाटलिपुत्र
दुसर नाँव कौटिल्य, विष्णुगुप्त
शिक्षा तक्षशिला
पद चन्द्रगुप्त मौर्य कय महामंत्री
किताब अर्थशास्त्र , चाणक्यनीति

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व ३७५ - ईसापूर्व २२५) चन्द्रगुप्त मौर्य कय महामंत्री रहे। वे 'कौटिल्य' नावँ से भी विख्यात हैं। वन नंदवंश कय नाश कईकै चन्द्रगुप्त मौर्य कय राजा बनाईन। वन कय द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि कय महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज कय दर्पण मानि जात है। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' रहै। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराण अव कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथन् मा तो चाणक्य कय नाँव आवा ही है, बौद्ध ग्रंथो मा भी एनकय खीसा बराबर मिलत है। बुद्धघोष कय बनावल विनयपिटक कय टीका अव महानाम स्थविर रचित महावंश कय टीका में चाणक्य कय वृत्तांत दिया गवा है। चाणक्य तक्षशिला (याक नगर जवन रावलापिंडी के नगिचे रहै) के निवासी रहैं। इनके जीवन कय घटनन् कय् विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ई उ समय कय एक प्रसिद्ध विद्वान रहैं , ईमा कोउनो संदेह नाहीं है। कहत हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर छोट कय कुटिया में रहत रहैं।

परिचय[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

चद्रगुप्त कय साथे चाणक्य कय मैत्री कय खीसा ऐसन है-

पाटलिपुत्र कय राजा नंद या महानंद कय किहाँ कवनो यज्ञ रहा। वहमा ये भी गए औ भोजन कय समय एक्ठु प्रधान आसन पै जाईकै बैठें।चाणक्य कय रङङ करिआ होएक नाते राजा वन्हय ओहँसे उठाई दिहिन । एहपे रीसीआइकय वन इ किरीया खाइन की जब तक नंद खानदान कय नाश नाइ कै देब तब तक आपन चुर्की नाइ बान्हब।अव उही समय राजकुमार चन्द्रगुप्त कय अपने राज्य से निकारा भवा रहा । चद्रगुप्त अव चाणक्य मिलीकय म्लेच्छा राजा पर्वतक कय साथे नंद से लडाई किहीन अव नंदन् कय नाश किहिन । नंद कय नाश कय संबंध मा कयु प्रकार कय खीसा है।

चाणक्य के रहल बना सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य

जीवन[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

वनकय जनम कय बारे में बहुत विद्वानन मा मतभेद है। केहु कय अनुसार वनकय जनम पंजाब कय चणक क्षेत्रमा भवा रहा तव केहु कहा लँय की वनकय जनम दक्खीन भारत मा भवा रहा ।कवनो कवनो विद्वानन् कय इहो विचार है कि वन कांचीपुरम कय रहय वाले द्रविण बाभन रहें अव जीअए-खाए उत्तर भारत मा आए रहें ।कुछ विद्वानन् कय मतानुसार केरल वनकय जनम स्थान बतावा जात है। इही संबंध मा वनकय द्वारा चरणी नदी कय उल्लेख इहै बात कय प्रमाण कय रूप में दै जात है । कौटिल्य कय बारे में ई कहि जात है कि वन बड़ा स्वाभिमानी अव क्रोधी स्वभाव कय मनई रहें। एक्ठु किंवदंती कय अनुसार एक दाइ मगध कय राजा महानंद शराध कय अवसर पे कौटिल्य कय अपमानित किहिन रहा। कौटिल्य क्रोध मे वशीभूत होइकय आपन चुर्की खोलिकय इ प्रतिज्ञा लिहिन कि जब तक वन नंदवंश कय नाश नाइ कै दिहैं तब तक वन आपन चूर्की नाइ बन्हिहैं। कौटिल्य कय व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश करय कय इहो एक्ठु बड़ा कारण रहा। नंदवंश कय विनाश कय बाद वन चन्द्रगुप्त मौर्य कय राजगद्दी पे बैठय में हर संभव सहायता कीहिन। चन्द्रगुप्त मौर्य गद्दी पे बैठैक बाद वन्हय पराक्रमी बनावै में औ मौर्य साम्राज्य कय विस्तार करै कै उद्देश्य से वन व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश किहिन।

कौटिल्य कय अर्थशास्त्र[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

चाणक्य सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य (321-298 ई.) कय महामंत्री रहें। वन चंद्रगुप्त कय प्रशासकीय उपयोग खत्तीर इ ग्रंथ कय रचना कीहीन रहा। इ मुख्यत: सूत्रशैली में लिखा है औ संस्कृत कय सूत्रसाहित्य कय काल औ परंपरा में आवै लायक है। इ शास्त्र बिना कवनो विस्तार कय, समझय औ ग्रहण करै में सरल अव कौटिल्य कय अपनै शब्द में लिखा है।

चाणक्य कय राज्य कय अवधारणा[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

कौटिल्य राज्य कय तुलना मनई-शरीर से करें हैं। राज्य कय कुल तत्त्व मनई कय शरीर कय अंग जइसन परस्पर सम्बन्धित, अन्तनिर्भर अव मिलि-जुलिकय काम करत हैं ।

  • स्वामी (राजा) मुड कय बराबर है। उ कुलीन, बुद्धिमान, साहसी, धैर्यवान, संयमी, दूरदर्शी अव युद्ध-कला में निपुण होएक चाहिं।
  • अमात्य (मंत्री) राज्य कय आँख होए। इ शब्द कय प्रयोग कौटिल्य मंत्रीगण, सचिव, प्रशासनिक अव न्यायिक पदाधिकारिन् खत्तीर भी करें हैं। वन अपनै देश कय जन्मजात नागरिक, उच्च कुल से सम्बंधित, चरित्रवान, योग्य, बहुत कला में निपुण अव स्वामीभक्त होएक चाहि।
  • जनपद (जमिन अव प्रजा या जनसंख्या) राज्य कय जाङ्ह या गोड होय, जेकरे पे राज्य कय अस्तित्व टिका है। कौटिल्य उपजाऊ, प्राकृतिक संसाधन से परिपूर्ण, पशुधन, नदि,पोखरा अव वन्यप्रदेश प्रधान भूमि कय उपयुक्त बताइन है।

जनसंख्या में किसान, मजुरहा अव आर्थिक उत्पादन में योगदान देए वाला प्रजा है। प्रजा कय स्वामिभक्त, परिश्रमी अव राजा कय आज्ञा कय पालन करए वाला होएक चाहि।

  • दुर्ग (किला) राज्य कए हाथ होंए, जेकर काम राज्य कय रक्षा करब होए। राजा कय ऐसन किला कय बनवावैक चाहि, जवन आक्रमक युद्ध खत्तीर अव रक्षात्मक दृष्टिकोण से लाभकारी होए। कौटिल्य चार किसिम कय दुर्ग-औदिक (जल) दुर्ग, पर्वत (पहाड़ी) दुर्ग, वनदुर्ग (जंगली) अव धन्वन (मरुस्थलीय) दुर्ग कय वर्णन करें हैं।
  • कोष (राजकोष) राजा कय मुह जैसन है।
  • दण्ड (बल, डण्डा या सेना) राज्य का दिमाक होए।
  • सुहृद (मित्र) राज्य के कान होए। राजा के मित्र शान्ति अव युद्धकाल दुनों में वनकय सहायता करत हैं।

कूटनीति अव राज्यशिल्प[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

कौटिल्य न केवल राज्य के आन्तरिक कार्य, बल्कि वाह्य कार्यों का भी विस्तार से चर्चा किहिन हैं। ई सम्बन्ध मा ऊ विदेश नीति, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों तथा युद्ध व शान्ति के नियमों का विवेचन किहिन हैं। कूटनीति के सम्बन्धों का विश्लेषण किए खातिर मण्डल सिद्धांत प्रतिपादित किहिन हैं-

मण्डल सिद्धांत कौटिल्य अपन मण्डल सिद्धांत मा विभिन्न राज्यों द्वारा दूसरे राज्यों के प्रति अपनाई नीति का वर्णन किहिन हैं । प्राचीन काल मा भारत मा अनेक छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व रहै । शक्तिशाली राजा युद्ध द्वारा अपन साम्राज्य का विस्तार करत रहैं । राज्य कई बार सुरक्षा की खतिर और राज्यों में समझौता भी करत रहैं। कौटिल्य के अनुसार युद्ध व विजय द्वारा अपन साम्राज्य का विस्तार करन वाले राजा को अपने शत्रुओं की तुलना मा मित्रों की संख्या बढ़ावेक चही, ताकि शत्रुअन पर नियंत्रण रखा जा सके। दूसर ओर निर्बल राज्यों का शक्तिशाली पड़ोसी राज्यों से सतर्क रहना चही। उनका समान स्तर वाले राज्यों के साथ मिलकर शक्तिशाली राज्यों की विस्तार-नीति से बचने खतिर याक गुट या ‘मंडल’ बनाना चही। कौटिल्य का मंडल सिद्धांत भौगोलिक आधार पर ऊ दर्शावत् है कि किस प्रकार विजय की इच्छा रक्खै वाले राज्य के पड़ोसी देश (राज्य) ऊकय मित्र या शत्रु हो सकत हैं। ई सिद्धांत के अनुसार मंडल के केन्द्र में याक एक ऐस राजा होत है, जो और राज्यों को जीतने का इच्छुक होत है, ईका ‘‘विजीगीषु’’ कहा जात है। ‘‘विजीगीषु’’ के मार्ग में आवै वाला सबसे पहिला राज्य ‘‘अरि’’ (शत्रु) तथा शत्रु से लगा हुआ राज्य ‘‘शत्रु का शत्रु’’ होत है, मतलब ऊ विजीगीषु का मित्र होत है। कौटिल्य ‘‘मध्यम’’ व ‘‘उदासीन’’ राज्यों का भी वर्णन किहिन हैं, जो सामर्थ्य होते हुए भी रणनीति में भाग नहीं लेत हैं।

कौटिल्य का ई सिद्धांत यथार्थवाद पर आधारित है, जो युद्धों को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की वास्तविकता मानकर संधि व समझौते द्वारा शक्ति-सन्तुलन बनावे पर बल देत है।