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फगुवा

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होली (फगुवा)
Holi
- {{{त्युहार_कय_नावँ}}}
होली कय मौक्का पे रङग् से रंगीन चेहरा।
आधिकारिक नाँव होली
दुसर नाँव फगुआ, धुलेंडी, दोल
मनावय वाले हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी
किसिम धार्मिक, सामाजिक
उद्देश्य धार्मिक निष्ठा, उत्सव, मनोरंजन
सुरुवात बहुतय पुरान
तिथि फागुन पुन्नवाशी
रिवाज होलिका दहन अव रंग से खेल
उत्सव रंग से खेलेक
वईसय दुसर त्युहार होला मोहल्ला, याओसांग

होली वसंत ऋतु में मनावय वाला एकठु भारतीय अउर नेपाली लोगन का त्यौहार ह । ई पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा का मनावल जाला.

होली रंग अउर हँसी - ठिठोली का त्यौहार ह । ई भारत कय एक प्रमुख अउर प्रसिद्ध त्यौहार होय जवन आज विश्व भर मा मनावा जात अहै। रंगो का त्यौहार कहलावै वाला ई पर्व पारंपरिक रूप से दुइ दिन मनावा जात है। इ भारत औ नेपाल मा भी प्रमुख रूप से मनावा जात अहै। इ त्यौहार कई अन्य देसन मँ भी धूम -धाम से मनावा जात ह, जहाँ अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहत हीं । 2] पहिले दिन होलिका जलावा जात है, जेकरा होलिका दहन भी कहल जाला. दुसरका दिन, जेकर मुख्य रूप से धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धुलिवंदन एकर अन्य नाम हैं, लोग एक दुसरे पर रंग, अबीर - गुलाल आदि फेंकते हैं, ढोल बजाकर होली के गीत गाये जाते हैं और घर - घर जाकर लोगन का रंग लगाये जाते हैं। ई मानल जात बा कि होली के दिन लोग पुरान कटुता के भुलाके आलिंगन मिलेला अउर दोस्ती फिर से बन जाला. एक दुसरे का रंग लगावेके अउर गाना गवनई के दौर दुपहर तक चलत रही। स्नान अउर विश्राम क बाद नई-नई ओढ़ना पहिरिके साँझ क समय लोग एक दुसरे क घरे लउटत हीं अउर घूर-घूर करत हीं अउर मिठाइ देत हीं।

होली भारत कय बहुत प्राचीन पर्व अहै जवन होली, होलिका या होलाका[7] नाम से मनावा जात रहा । बसंत ऋतु मा हर्षोल्लास के साथ मनाये जाये के कारन एकरा बसंतोत्सव अउर काम - महोत्सव भी कहा जात है।

राधा - श्याम गोप अउर गोपियन क होली

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उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लठ्ठमार होली

इतिहासकारन का मानना है कि आर्यन मा भी ई पर्व का प्रचलन रहा लेकिन ज्यादातर ई पूर्वी भारत मा ही मनावा जात रहा। इ पर्व कय वर्णन कई पुरातन धार्मिक ग्रंथन मा मिला अहै । इनमे प्रमुख हैं, जैमिनी का पूर्व मीमांसा-सूत्र अउर कथा गार्ह्य -सूत्र। नारद पुराण अउर भविष्य पुराण जइसे पुराणन के प्राचीन पांडुलिपियन अउर ग्रंथन में भी इ पर्व का उल्लेख मिलेला । विंध्य क्षेत्र कय रामगढ़ स्थान पे स्थित ईसा से ३०० साल पुरान एक अभिलेख मा भी एकर उल्लेख है । संस्कृत साहित्य मा वसन्त ऋतु औ वसन्तोत्सव अनेक कवि लोगन का प्रिय विषय रहा है

होलिका दहन का मुख्य कथा

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भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध होली के पर्व से अनेक कथा जुड़ल बाड़ी सन। प्रहलाद का कहानी सबसे प्रसिद्ध है। माना जात ह कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर रहा । आपन ताकत के अहंकार में ऊ खुद के भगवान मानत रहे. उ अपने राज्य मँ परमेस्सर क नाउँ क प्रचार करइ बरे एक प्रचारक क रूप मँ काम करत रहा। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त रहा । प्रहलाद क ईश्वर भक्ति से क्रोधित होइके हिरण्यकशिपु ओका कई कठोर दंड दिहेन, पर उ ईश्वर भक्ति का मार्ग नाहीं छोड़ेन । हिरण्यकशिपु क बहिन होलिका क वरदान प्राप्त रहा कि उ आगी मँ भस्म नाहीं होइ सकत रही । हिरण्यकशिपु हुक्म दिहिन कि होलिका प्रह्लाद का गोदी मा लेके आगि मा बइठ जा। आगि मा बइठके होलिका तो जली, पर प्रह्लाद बच गिस। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद मा ई दिन होली जलाय जात है।

होली से जुड़ी मुख्य कथा के अनुसार एक नगर मा हिरण्यकश्यप नाम का दानव राजा रहत रहा । उ हर एक मनई स आपन पूजा करवावइ क कहत रहा, मुला ओकर पूत प्रह्लाद भगवान विष्णु क उपासक भक्त रहा । हिरण्यकश्यप भक्त प्रहलाद क बोलाइके राम क नाम न जपइ क कहेस तब प्रहलाद साफ साफ कहेस, "पिताजी! परमात्मा से सब होत है। परमात्मा से सब होत है, बन्दे से कुछ नाहीं। उ मनई क तरह जउन जिअत रहइ बरे बहोत कमजोर अहइँ। अगर कउनो भगत साधना कइके परमात्मा से कुछ शक्ति प्राप्त कर लेत तउ उ साधारण लोगन में त उत्तम बन जात, पर परमात्मा से उत्तम नाहीं होइ सकत । []

इ सुनिके अहंकारी हिरण्यकश्यप क्रोध से लाल होइ गवा अउर सेवक सिपाहियन स कहेस, 'इ मनई क मोरे निगाह क समन्वा स हटाइ ल्या अउर एका नाग मँ धइ द्या ।' अगर साँप क डंक मारइ तउ उ मरि जाइ । इ वइसा ही भवा जइसा एलीसा कहे रहा। मुला प्रहलाद नाहीं मरा काहेकि सांपन ओका नाहीं डसउतेन । []

प्रह्लाद की कथा के अलावा इ पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास अउर कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा बा । कुछ लोगन का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव का गण का भेष धारण करते हैं और शिव का बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगन का इहो विश्वास बा कि भगवान श्रीकृष्ण एही दिन पुतना नामक राक्षसी का वध कईले रहलन. एही खुशिया में गोपी अउर ग्वालन रासलीला अउर रंग खेले रहिन।

होली के पर्व की तरह एकर परम्परा भी बहुत प्राचीन है अउर एकर स्वरूप अउर उद्देश्य समय के साथ बदलते रहा है। पुरातन काल मा ई विवाहित महिला द्वारा परिवार के सुख समृद्धि खातिर मनावल जात रहा अउर पूर्णिमा के पूजन करे के परम्परा रही । वैदिक काल मा इ पर्व नवात्रैष्टी यज्ञ कहलावत रहा । उ समय खेत क अधपके अन्न का यज्ञ में दान कइके प्रसाद ग्रहण करै का विधान समाज में व्याप्त रहा । अन्न का होला कहत है, एही से एकर नाम होलिकोत्सव पड़ा। भारतीय ज्योतिष कय अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा कय दिन से नव वर्ष कय आरम्भ भी मानल जात अहै। इ त्यौहार के बाद चैत्र महीना का आरम्भ होई । एह बरे इ पर्व नवसंवत क आरम्भ अउर वसंतागमन क प्रतीक अहइ । एही दिन पहिला पुरुष मनु कय जनम भवा रहा, एही कारन इ दिन मनवादितिथि कहा जात है ।

  1. "होलिका दहन की वास्तविक कहानी (कथा)". SA News.
  2. "Holi Festival 2020 Hindi: Holika Dahan Story,Quotes,ऐसे मनाए होली". S A NEWS (अंग्रेज़ी में). 2020-03-08. अभिगमन तिथि 2020-03-09.