महाशिवरात्रि

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महाशिवरात्रि

लिंगराज मंदिर महाशिवरात्रि मा सजल बा
आधिकारिक नाम महाशिवरात्रि
अन्य नाम महा शिवरात्रि
अनुयायी हिन्दू, भारतीय, नेपाली प्रवासी भारतीय
प्रकार हिन्दू
उद्देश्य भगवान शिव अउर पार्वती के बिआह
अनुष्ठान धार्मिक (हिन्दू धर्म)
तिथि माघ फागुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (८ मार्च २०२४)

महाशिवरात्रि भगवान शिव अउर पार्वती के बिआह के याद मा मनावल जाला, अउर ई अवसर पर शिव आपन दैवीय नृत्य करेले, जेकरा तांडव कहल जाला.

कथाएँ[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

महाशिवरात्रि से जुडी कई पौराणिक कथाएँ है

समुद्र मंथन[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

समुद्र मंथन अमृत का उत्पादन करे खातिर निश्चित रहे, लेकिन एकरे साथ ही हलाहल नामक जहर भी पैदा होत रहे। हलाहल विष मा ब्रह्माण्ड का नाश करे क क्षमता रही अउर एह बरे केवल भगवान शिव ही ओका नष्ट कइ सकत रहेन। भगवान शिव हलाहल नामक जहर का आपन गला मा रख लेले रहे। जहर एतना ताकतवर रहा कि भगवान शिव जी बहुत ज्यादा दर्द से ग्रस्त हो गए अऊर उनका गला नीला पड़ गया. एही कारन भगवान शिव 'नीलकण्ठ' नाम से प्रसिद्ध अहै। इलाज खातिर, डाक्टरन देवता लोगन से कहेन कि भगवान शिव का रात भर जगाय रखे। इ प्रकार, भगवान शिव का चिंतन एक सतर्कता रखेला। शिव का प्रसन्न करने अउर जागृत रखे खातिर, देवता लोग अलग - अलग नृत्य अउर संगीत बजावत रहेन। जइसे ही सबेरा भवा, ओनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव उन सब लोगन का आशीर्वाद दिहेन । शिवरात्रि उ घटना का उत्सव है,जिससे शिव दुनिया का उद्धार करे रहेन। तबे से भक्त लोग ई दिन उपवास रखे हैं।[१]

शिकारी कथा[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

एक बार पार्वती जी भगवान शिवशंकर से पूछिन, 'अइसा कौन श्रेष्ठ अउर सरल व्रत-पूजन है, जवने से मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेत हैं? ' जवाब में शिवजी पार्वती का 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बता के ई कथा सुनाय दिहिन - 'एक बार चित्रभानु नाम का एक शिकारी रहा. पसुअन क मारिके उ आपन परिवारे क खइया खात रहा । उ एक ठु साहूकार क लगे कर्ज लिआवत रहा, मुला उ ओका चुकाइ नाहीं सका। क्रोधित साहूकार शिकारी का शिवमठ मा कैदी बना लिहिस। संयोगवश ऊ दिन शिवरात्रि रहे. '

शिकारी ध्यानमग्न होके शिव-संबंधी धार्मिक बात सुनता रहा । चतुर्दशी पर ऊ शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनले. सांझ होइ जाए प उ ओका आपन क लगे बोलाएस अउर उ ओका कर्ज क बारे मँ बताएस । शिकारी अगले दिन सारा कर्जा वापस करे का वचन देकर बंधन से छूट गया। आपन दिनचर्या के हिसाब से ऊ जंगल में शिकार करे निकरा । मुला दिन भर कैदी घरे मँ रहत भवा भूख अउर पियास स तड़पत रहा । शिकार करइ बरे उ एक तालाब क किनारे बेल क बृच्छ पइ ठहरइ लाग। बेल का पेड़ के नीचे शिवलिंग रहा जवन विल्वपत्रों से ढका रहा. शिकारी ओका नाहीं जानत रहा।

जब ऊ डेरा डाले रहा त ओकर टूटे टहनियन का संजोग से शिवलिंग पर गिर गइन । इ प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया अउर शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए । एक दिन आधी रात के बाद एक गर्भवती मृगिया तालाब पर पानी पिए खातिर आई। जब शिकारी धनुष पर तीर चढ़ा के तीर खींच लिहिस, तब मृगिया बोलिस, 'मैं गर्भवती हौ। मइँ आपन बिटिया क जन्म देब अउर तू एक पूत क जन्म देब्या। तू एक ही अउर सजीव देवतन क मारत अहा। इ ठीक नाहीं अहइ। मइँ ओका तोहरे लगे लिआउब अउर तू ओका मारि डउब्या । ' शिकारी प्रत्यचा ढीला कइ दिहिस अउर हिरनी जंगली झाड़ी मँ लुप्त होइ ग ।

थोड़के देर बाद, एक अउर हरिण आई । शिकारी क खुसी क कउनो अंत नाहीं रहा। जब उ नगिचे आइ तउ धनुस पइ तीर चलाएस। तब ओका लखिके हरिण विनम्र होइके बोला, 'हे पारधी! मइँ कामातुर विरहिन हूँ। मइँ आपन पिरेमियन बरे एक गदेला खोजत फिरत हउँ। मइँ आपन पति क साथ जल्द ही लउटब अउर तोहरे लगे आउब । ' तब उ ओनका अग्रजन (प्रमुखन) अउर बिसेस मनइयन क लगे पठएस जउन उहइ नगर मँ रहत रहेन, जेहमाँ नाबोत रहत रहा। दुट्ठ मनई ओका हेरत रहत ह अउर ओका आपन मूँड़ हिलवइ देत ह । उ बहोतइ दुःखी अउर बियाकुल होत रहा। रात का आखरी पहर बीत रहा था। उहइ समइ प हुअँइ एक ठु अउर चीला आपन बच्चन क संग बाहेर आइ गवा । शिकारी खातिर ई एगो सुवर्ण अवसर रहे. उ धनुस पर तीर चलावइ मँ देर नाहीं लगाइ । तउ जब उ बाण चलावइ लाग तउ हरिण बोला, "अरे! हे शिकारी मइँ ओनका एक संग लिआउब अउर ओनका एक ठु मनई सा बनाउब । "इ समइ प मोरी पसुअन हँसत हीं अउर कहत हीं, 'मइँ तउ कछू भी खोवा नाहीं चाहत। मइँ पहिले ही दुइ दाई हराइ चुका अहउँ। मोर बच्चन भूखन रहिहीं अउर सोक स तंग रहिहीं। जवाब मँ मृगी फिन कहेस, "जउन तोहका सतावत अहइ, उ आपन बचवन बरे अइसा ही करत अहइ । एह बरे मइँ सिरिफ बचवन क ही जिन्नगी मँ एक लम्बा समइ खातिर इन्तजार करत हउँ। अरे गवांए से गारी जात बरी स बुक कराई का मोका भरोसा अहइ कि इ मोका निआव देब्या अउर मोर पराथना अहइ कि कृपा कइके तू इ मनइयन क मोरे लगे वापिस लइ आवा।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी का उस पर दया आ गई। अउर उ ओका पतन स बचाइ लिहस । शिकार के अभाव में बेल - पेड़ पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़ तोड़ के नीचे फेंका जात रहा । भोर होत ही एक ठु हृष्टपुष्ट मृग उ राहे पइ आइ गवा । शिकारी सोचेस कि ओकर सिकार जरुर कइ लेइ। शिकारी क तनी प्रत्यछ देखिके मृगविनीत स्वर मा कहिस, हे पारधी भाई! जदि तू मोरे तीन ठु गदहन अउ नान्ह नान्ह बचवन क मार डाया ह तउ मोका भी मारि डावा जाइ चाही । नाहीं तउ मोका एक पल बरे भी ओनके बरे दुःख नाहीं झेलइ क होइ । मइँ ओन लोगन स घिना करत हउँ जउन तोहार खिलाफ बिद्रोह करत ह। अगर तू ओनका जिअत रहइ देब्या, तउ कृपा कइके मोका भी एकपल्ट अउर जिअत रहइ देब्या । मइँ ओनका तोहका दइ दिहेउँ, अउर तू ओनका दण्ड दिहा।

हिरन का बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना चक्र घूम गवा, उ पूरा कहानी हिरन से बता दिहलस। तब मृग बोला, 'जउन तरह से मोर तीन मेहरारु प्रतिज्ञा कइ लिहन अहइँ, मोर मरइ स पहिले उ पचे अपने धरम क पालन नाहीं कइ पइहीं । काहेकि तू ओनका भरोसा दइके, ओनका छोड़ देब्या, जइसे तू ओनका छोड़ दिहा ह । अउर मइँ ओनका तोहका दइ देब । ' उपवास, रात्रि - जागरण अउर शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ला से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गइल रहे. भगवत शक्ति का वास हो गइल रहे। धनुष अउर तीर ओकरे हाथे स आसानी स छूट गवा। भगवान शिव की कृपा से ओकर हिंसक हृदय करुणिक भावन से भर गवा । उ आपन मनफिरावा क याद करत भवा बहोत दुःखी अउर बियाकुल होत रहा।

हिरन का बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना चक्र घूम गवा, उ पूरा कहानी हिरन से बता दिहलस। तब मृग बोला, 'जउन तरह से मोर तीन मेहरारु प्रतिज्ञा कइ लिहन अहइँ, मोर मरइ स पहिले उ पचे अपने धरम क पालन नाहीं कइ पइहीं । काहेकि तू ओनका भरोसा दइके, ओनका छोड़ देब्या, जइसे तू ओनका छोड़ दिहा ह । अउर मइँ ओनका तोहका दइ देब । ' उपवास, रात्रि - जागरण अउर शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ला से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गइल रहे. भगवत शक्ति का वास हो गइल रहे। धनुष अउर तीर ओकरे हाथे स आसानी स छूट गवा। भगवान शिव की कृपा से ओकर हिंसक हृदय करुणिक भावन से भर गवा । उ आपन मनफिरावा क याद करत भवा बहोत दुःखी अउर बियाकुल होत रहा।

अनुष्ठान[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

ई अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक अनेक प्रकार से करल जाला। जलाभिषेक: पानी से अउर दुग्धाभिषेक: दूध से। बहुत सबेरे-सवेरे भगवान शिव के मंदिरन पर भक्तन, जवान अउर बुजुर्गन का तांता लग जात है ऊ सब पारम्परिक शिवलिंग पूजा करै अउर भगवान से प्रार्थना करै खातिर जात है। भक्त सूर्योदय के समय गंगा, या (खजुराहो के शिव सागर में) या कौनो अन्य पवित्र जल स्रोत जइसन पवित्र जगह पर स्नान करत हैं. इ शुद्धिकरण क अनुष्ठान ह, जउन सबहि हिन्दू त्यौहारन का एक महत्वपूर्न हिस्सा ह । पवित्र स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहिरे जात हैं, भक्त शिवलिंग स्नान करे खातिर मंदिर में पानी का बर्तन ले जात हैं महिला अउर पुरूष दूनौ सूर्य, विष्णु अउर शिव के प्रार्थना करत हैं मंदिरों में घंटी और "शंकर जी की जय" की आवाज गूंजती है। भक्त शिवलिंग कय तीन या सात बार परिक्रमा करत है औ फिर शिवलिंग पर पानी या दूध भी डालत है

सन्दर्भ[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

  1. "महाशिवरात्रि से पहले जानिए समुद्र मंथन से जुड़े भगवान शिव के इस मंदिर का राज". Amar Ujala (हिन्दी में). 13 February 2018. अभिगमन तिथि 8 March 2024.