गणगौर

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गणगौर राजस्थान, मध्य प्रदेश अउर उत्तर प्रदेश निमाड़[१], मालवा, बुंदेलखण्ड अउर ब्रज क्षेत्रन का एक त्यौहार ह जवन चैत्र महीना के शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीज) पर आवेला। इ दिन कुँवारियन अउर विवाहित स्त्रियन[२] शिव जी (इसर जी) अउर पार्वती जी (गौरी) की पूजा करत हीं । पूजा करत समय दूब से पानी के छिड़काव करत "गोर गोर गोमती" गीत गावत हईन। इ दिन पूजन के समय रेणुका का गौर बनाके ओह पर महावर, सिन्दूर अउर चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चन्दन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन कर भोग लगावल जाला.

गणगौर
जयपुर के नगर भवन (सिटी पैलेस) की महिला डोरिया से निकलत गणगौर की झलक

गण (शिव) अउर गौर (पार्वती) के इ पर्व मा कुंवारी लइकी मनपसंद वर पावे खातिर कामना करत हई। विवाहित महिला चैत्र शुक्ल तृतीया पर गंगा पूजन अउर व्रत करके अपने पति की लम्बी आयु की कामना करत है।

होलिका दहन के दुसरका दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक, १८ दिन तक चले वाला पर्व है - गणगौर (गंगौर)। ई मानल जात बा कि माता गवरजा होली के दुसरका दिन आपन पीहर आवत बाड़ी अउर अठारह दिन के बाद ईसर (भगवान शिव) उनका फेर लेवे खातीर आवत बाड़े, चैत्र शुक्ल तृतीया के उनकर विदाई होत बा।

गणगौर की पूजा मा गाये जाय वाले लोकगीत इ अनोखा पर्व कय आत्मा होय । इ पर्व में गवरजा अउर ईसर की बड़ी बहिन अउर जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होत है अउर उन गीतों के उपरांत अपने परिजनन का नाम लिया जात है। राजस्थान कय कई प्रदेशन मा गनगौर पूजन एक जरूरी वैवाहिक रीत के रूप मा भी प्रचलित अहै।

निमाड़ मा गंगौर का पवित्र पर्व बहुत धूमधाम से मनावल जात है, त्यौहार के अंतिम दिन हर गांव मा भण्डारे का आयोजन होत है अउर माता का विदाई दी जाती है।

गणगौर पूजन में कन्या अउर महिला अपने खातिर अखंड सौभाग्य, अपने पीहर अउर ससुराल की समृद्धि अउर गणगौर से हर साल फिर से आवे के आग्रह करत हई।

गणगौर व्रत कथा[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती अउर नारद जी के साथ भ्रमण पर चले गए। उ चलत चलत चैत्र शुक्ल तृतीया का एक गाँव पहुच गवा । जब उ पचे सुनेन कि उ पचे आवत अहइँ तउ गरीब मेहररूअन आपन थालन मँ हल्दी अउर अक्षत लइके पूजा बरे तुरंत हुवाँ पहुँचेन । पार्वती जी उनके पूजा भाव का समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिहिन। उ पचे वापस लउटिके आएन अउर ओका दफनावा गवा ।

कुछ देर बाद धनी वर्ग क मेहरारूअन अनेक प्रकार क पकवान सोना चांदी क थालो मा सजाइके सोलह श्रृंगार कइके शिव अउर पार्वती के सामने पहुचिन । इ मेहरारुअन क देखिके भगवान शंकर पार्वती स कहेन कि तू सारा सुहाग रस तउ गरीब वर्ग क मेहरारुअन क दइ दिहे अहा । अब इनकै खातिर का करिहौ? पार्वती जी कहिन प्राणनाथ! ओन मेहररूअन क उ पानी दइ दीन्ह गवा अहइ जउन ऊपर क पदार्थन स बनावा गवा ह।

एह बरे ओकर सुहाग धोती स रही । मुला मइँ ओन धनी स्त्रियन क एक अंगुरी काटइ बरे देब जउन रकत क छिड़कब अउर इ देखावइ बरे कि उ पचे बहोत भाग्यशाली अहइँ। जब इ स्त्रियन शिव पार्वती पूजन खतम कइ लिहन तब पार्वती जी आपन अंगुरी चीरिके अउर ओकर खून ओनके ऊपर छिड़क दिहन, जेकर ऊपर जेतना छिड़क पड़े रहा उ ओतना ही सुहाग पाइ गइन ।

पार्वती जी कहली कि तुम सब कपड़ा आभूषण का त्याग करो, माया मोह से रहित रहो और तन, मन, धन से पति की सेवा करो। तू पचे एतना लजान रह्या जेतना अउर कउनो दूसर मनई नाहीं रहा। एकरे बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेके नदी मा स्नान करे गइन । स्नान कइला के बाद ऊ बालू से शिव जी का मूर्ति बना के पूजा कइली।

भोग लगावा अउर प्रदक्षिणा कइके दुइ कणन का प्रसाद ग्रहण कइके मस्तक पर टीका लगावा। उहइ समय उ पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट भए अउर पार्वती का वरदान दिहिन आज के दिन जउन स्त्री मोर पूजन अउर तोहार व्रत करी, ओकर पति चिरंजीवी होई अउर मोक्ष प्राप्त होई। भगवान शिव ई वरदान देके अंतर्धान हो गइलन।

एतना सब करत - करत पार्वती जी का बहुत समय बीत गवा । पार्वती जी नदी के किनारे से चलके उ जगह पर आई जहाँ पर भगवान शंकर अउर नारद जी छोड़ गई रहिन।

शिव जी देरी से आवे का कारन पूछलन त एकर जवाब पर पार्वती जी कहली कि हमार भाई भावज नदी के किनारे मिल गइलन। उ मोहसे कहेस, "कृपा कइके आप जउन जुद्ध करइ चाहत अहा, करा।

गणगौर नृत्य[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

गणगौर राजस्थान अउर मध्यप्रदेश का प्रसिद्ध लोक नृत्य ह । इ नाच में कन्या लोग एक दुसरे का हाथ पकड़के घेरके गोरी माँ से अपने पति के दीर्घायु खातिर प्रार्थना करत नाचत हईन। इ नृत्य क गीतन का विषय शिव - पार्वती, ब्रह्मा - सावित्री अउर विष्णु - लक्ष्मी क स्तुति से भरा होत ह । उदयपुर, जोधपुर बीकानेर अउर जयपुर के अलावा राजस्थान के कई नगरन की प्राचीन परंपरा है। गनगौर नृत्य मध्य प्रदेश कय निमाड़ अंचल का प्रमुख नृत्य होय।

गौर गौर गोमती नृत्य का गाना[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला , गौर का सोना का टीका
टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो
करता करता आस आयो वास आयो
खेरे खांडे लाडू आयो , लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले मने पाल दी , पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला , सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा , गेंहू ग्यारा , राण्या पूजे राज ने , म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को राज बढ़तो जाए , म्हाको सुहाग बढ़तो जाय ,
कीड़ी- कीड़ी , कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात है , जात है गुजरात है ,
गुजरात्यां को पाणी , दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में सिंघोड़ा , बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो , सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो
झर झरती जलेबी ल्यो , हर-हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो

इ तरह सोलह बार कहिके अउर आखिरी मँ कहा : एक-लो , दो-लो ……..सोलह-लो।

सन्दर्भ[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]

  1. "गणगौर पर्व की तैयारियों को लेकर हुई ग्रामीणों की बैठक". Dainik Bhaskar (हिन्दी में). 18 March 2024. अभिगमन तिथि 20 March 2024.
  2. Bharat, ETV (19 March 2024). "जानिए होलिका दहन का मुहूर्त, कब बहनें लगा सकेंगी भाइयों को तिलक". ETV Bharat News (हिन्दी में). अभिगमन तिथि 20 March 2024.