तुलसीदास
गोस्वामी तुलसीदास | |
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जनम | रामबोला ११ अगस्त, १५११ ई० (सम्वत्- १५६८ वि०, श्रावण शुक्ल सप्तमी, शुक्रवार) [१] सोरों शूकरक्षेत्र, जनपद- कासगंज, उत्तर प्रदेश, भारत |
मौत | ०३ अगस्त, १६२३ ई० (संवत १६८० वि०, श्रावण शुक्ल सप्तमी, गुरुवार) वाराणसी |
तुलसीदास कय जन्म सावन कय शुक्लपच्छ सप्तमी मे वर्तमान भारत कै उत्तरप्रदेश कै चित्रकूट मे भए रहा ।ओए संस्कृत औ अवधी में अनेकौ सुप्रसिद्ध ग्रन्थ लिखेन पर वोए अपने सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ "रामचरितमानस", विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, इत्यादि कै रचियता के रूप मा जाना जाथिन्ह।[२] उनकै जन्म राजापुर गाँव (वर्तमान बाँदा जिला), उत्तर प्रदेश में भवा रहा। अपने जीवनकाल मा वोए कुल १२ ग्रन्थ लिखेन्। वोए संस्कृतविद्वान होवै के साथै हिन्दीभाषौ के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियन् मा एक माना जाथिन्। श्रीरामचरितमानस वाल्मीकि रामायण कै प्रकारान्तर से ऐसन अवधी भाषान्तर अहै जेहमा अन्य कइयौ कृतिन् से महत्वपूर्ण सामग्री समाहित करी गय अहै। रामचरितमानस कै समस्त उत्तर भारत मा बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जात् है। ईके बाद विनय-पत्रिका उनकै एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य माना जात है। त्रेतायुग कै ऐतिहासिक राम-रावण युद्ध पै आधारित वनकै प्रबन्ध काव्य रामचरितमानस का विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यन् मा ४६वाँ स्थान देवा गा अहै।
जन्म
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले मा कुछु दूरी पर राजापुर नामक एक ग्राम रहै, हुंवाँ आत्माराम दुबे नाम के याक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण रहत रहैं। उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी रहै।[३] संवत् १५५४ के श्रावण मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र मा इन्हीं भाग्यवान दम्पति के हिंयाँ ई महान आत्मा मनुष्य योनि मा जन्म लिहिन।[४] प्रचलित जनश्रुति के अनुसार शिशु पूरे बारह महीने तक माँ के गर्भ मा रहे के कारण अत्यधिक हृष्ट पुष्ट राहै और ऊके मुख मा दाँत दिखायी देत रहैं। जन्म लेने के बाद प्राय: सभी शिशु रोया ही करत हैं पर ई बालक जो पहिल शब्द बोलिस ऊ राम रहै। इहे मारे इनका घर का नाम ही रामबोलान्पड़ गवा।
बचपन
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]भगवान के प्रेरणा से शुकरक्षेत्र सोरोन में रहकर पाठशाला चलावे वाले गुरु नृसिंह चौधरी इ रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुकल इ बालक के खोज निकाले अउर विधिवत एकर नाम तुलसीदास रखले. गुरु नृसिंह चौधरी ही इनका रामायण, पिंगलशास्त्र अउर गुरु हरिहरानंद इनका संगीत का शिक्षा दिहिन। तदोपरान्त बदरिया निवासी दीनबंधु पाठक की विदुषी पुत्री रत्नावली से संवत् 1589 विक्रमी में इनका विवाह भईल, जेकर गर्भ से एगो बेटा भी इनका प्राप्त भईल, जेकर नाम तारापति / तारक रहे, जवन कि कुछ समय बाद ही काल कवलित हो गईल। जब रत्नावली का पीहर (बदरीया) चला गवा त ई रात में ही गंगा पार करके बदरिया जा पहुंचे। तब रत्नावली लज्जित होइके ओनका डाटेस । उ बचन सुनिके उनके मन मा वैराग्य का अंकुर फूट गइन अउर ३६ साल की उमर मा शुकरक्षेत्र सोरोन का सदा खातिर छोड़ के चले गइन ।[५]
रामचरितमानस का रचना
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]संवत् १६३१ का प्रारम्भ भवा । संयोग से उ साल रामनवमी का दिन वैसा ही योग आया, जइसन त्रेतायुग में राम-जन्म का दिन रहा था। ओही दिन सबेरे तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस का रचना प्रारम्भ कइलन। दुइ साल, सात महीना अउर छब्बीस दिन मँ इ अद्भुत काम पूरा भवा । संवत् १६३३ का मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष मा राम - विवाह के दिन सातों कांड पूरा होइ गवा ।
एकरे बाद भगवान क आज्ञा से तुलसीदास जी काशी चले आये. हुवाँ उ भगवान विश्वनाथ अउर माता अन्नपूर्णा का श्रीरामचरितमानस सुनाएस। रात मा किताब विश्वनाथ मंदिर मा रख दीन गय। प्रातः काल जब मंदिर क पट खोलवा ग रहा त उ किताब प लिखा रहा - सत्यं शिव सुन्दरम् जेकर नीचे भगवान शंकर क सही (पुष्टि) रहा । उ समय वहाँ उपस्थित लोगन क कानन स "सत्य शिव सुंदरम " क आवाज भी सुनाई पड़ी ।
जब काशी क पण्डितन क इ बात पता चली तउ उ पचे बहोत ईर्ष्यालु होइ गएन । उ पचे दल बनाएन अउर तुलसीदास जी क निन्दा करइ अउर उ किताब क नस्ट करइ क कोसिस करइ लागेन । उ पचे दुइ ठु चोर भी पठएन कि उ पचे ओका चोराइ लइ जाइँ । चोरन जब जाकर देखेन कि तुलसीदास जी क कुटी के आसपास दुइ जवान धनुषबाण खातिर पहरा देत रहेन । उ सबइ दुट्ठ लोग सुन्नर रहेनः सिय्योन अउर गोरुअन। जब उ पचे ओका निहारेन तउ उ पचे समुझि गएन कि उ एक नीक मनई रहा। उ चोरी करब तजि दिहन अउर भगवान भजन में लग गइन । तुलसीदास जी अपने खातिर भगवान का कष्ट भोगे जान कुटी का सारा सामान लूट लेहलन अउर किताब अपने दोस्त टोडरमल (अकबर के नौरत्नन में से एक) के पास रखवा दिहलन ।[६] एकर बाद ऊ आपन विलक्षण स्मृति शक्ति से एक दूसरा प्रतिलिपि भी लिखेस । एकर आधार पर दूसर प्रति बनवाई गइन अउर पुस्तक क प्रचार दिन - दिन बढ़त जात रहा।
इधर काशी के पंडितन का अउर कउनो उपाय न देखके श्री मधुसूदन सरस्वती नाम के महापंडित से उ किताब कय देखके आपन सम्मति देवे खातिर प्रार्थना कीन । मधुसूदन सरस्वती जी ओका देखिके बहुत खुस होई गइन अउर ओकरे ऊपर आपन टिप्पणी लिखिन -
हिन्दी मा एकर अरथ ई प्रकार है - " काशी के आनंद वन मा तुलसीदास साक्षात तुलसी का पौधा है । ओकर काव्य - मंजरी बड़ा ही मनोहर है, जिस पर श्रीराम रूपी भंवर सदा मंडराता रहता है। "
पंडित लोगन क ओनके इ टिप्पणी स संतुट्ठ नाहीं रहा गवा । तब किताब का परीछा का एक अउर तरीका सोचिये गए. काशी के विश्वनाथ मंदिर में भगवान विश्वनाथ के सामने सबसे ऊपर वेद, उनके नीचे शास्त्र, शास्त्रन के नीचे पुराण अउर सब के नीचे रामचरितमानस रखल गइल. जब सबेरे मंदिर खुलल त लोग देखल कि श्रीरामचरितमानस वेद का ऊपर रखल बा । अब तो सब पंडित लोगन का बहुत लज्जा होइ गवा । उ तुलसीदास जी से माफी माँगेस अउर भक्ति भाव से उनका चरणोदक ग्रहण करेस ।
मौत
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]तुलसीदास जी जब काशी के विख्यात घाट असीघाट पर रहे लगले त एक रात कलियुग मूर्त रूप धारण कर उनके पास आई अउर उनका पीड़ा देवे लगले। तुलसीदास जी ओही समय हनुमान जी का ध्यान कइलीं। हनुमान जी प्रत्यक्ष प्रकट होइके ओसे प्रार्थना पद रचवावे क कहिन, एकरे बाद ऊ आपन अंतिम कृति विनय पत्रिका लिखि के भगवान के चरणों में अर्पित कइ दिहिन। श्रीराम जी खुद एकर ऊपर आपन हस्ताक्षर कइ दिहन अउर तुलसीदास जी का निर्भय कइ दिहन।
संवत् १६८० मा श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन तुलसीदास जी "राम-राम" कहत आपन देह त्याग दिहिन।
रचना
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]आपन ११२ वर्ष के लम्बा जीवन काल मा तुलसीदास जी, कालजयी ग्रंथन कय रचना कीन [७]-
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सन्दर्भ
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करैं]- ↑ अविनाशराय ब्रह्मभट्ट द्वारा रचित "तुलसी प्रकाश"
- ↑ "गोस्वामी तुलसीदास की जयंती: तुलसीदास जी ने 76 वर्ष की उम्र में लिखा था ग्रंथ, आज भी सुरक्षित हैं अयोध्या कांड की पांडुलिपियां". Dainik Bhaskar (हिन्दी में). 3 August 2022. अभिगमन तिथि 1 May 2024.
- ↑ "तुलसी का जीवन-आत्माराम हुलसी के पुत्र थे तुलसी". Amar Ujala (हिन्दी में). 13 August 2013. अभिगमन तिथि 1 May 2024.
- ↑ "Tulsidas Jayanti 2021: जानिए कैसे पत्नी की फटकार से तुलसीदास जी बने श्रीराम के अनन्य भक्त". Amar Ujala (हिन्दी में). 15 August 2021. अभिगमन तिथि 1 May 2024.
- ↑ "जिस रामचरित मानस पर विवाद…उसके गायब होने की कहानी: तुलसीदास ने टोडरमल को दी थी, कहा था-किसी को दोगे तो फिर नहीं मिलेगी". Dainik Bhaskar (हिन्दी में). 19 February 2023. अभिगमन तिथि 1 May 2024.
- ↑ "Goswami Tulsidas Ki Rachnayein". IGNCA (हिन्दी में). अभिगमन तिथि 1 May 2024.